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________________ 49 : चतुःशरण प्रकीर्णक (38) हिंसादि दोषों से रहित, सभी जीवों पर करुणा करने वाले, स्वयंभूरमण संमुद्र के समान विशाल बुद्धि वाले, जरा-मरण से रहित, मोक्ष मार्ग के पथिक तथा सुकृत पुण्य वाले साधु मेरे लिए शरणभूत हों। (39) काम-विकारों से रहित, कलि-मल से मुक्त, चोरी से विविक्त, पापयुक्त सुरत अर्थात् मैथुन से रहित, गुण रूपी रत्नों से विभूषित साधु मेरे लिए शरणभूत हों। (40) जो आचार्य आदि साधुत्व में सुस्थित होने के कारण साधु कहे जाते हैं. यहाँ आचार्य, उपाध्याय और साधु सभी को अपने साधुत्व के गुणों के कारण साधु कहा गया है, ऐसे साधु मेरे लिए शरणभूत हों। .. (केवलि कथित धर्म शरण) मुनियों की शरण ग्रहण करने के पश्चात् अति हर्ष से रोमांचित, उन्नत वक्षःस्थल और विकसित शरीर वाला वह कहता है कि अब मैं जिनधर्म की शरण ग्रहण करता हूँ। (41) (42) सम्यक् प्रकार से कहे गये उस श्रेष्ठ जिनधर्म को कोई व्यक्ति शीघ्र अंगीकार कर लेता है और कोई उसे शीघ्र अंगीकार नहीं कर पाता है। मैं उस केवली प्ररूपित धर्म की शरण को अंगीकार करता हूँ। _ (43) जिसके द्वारा मनुष्य और देवताओं के सुख प्राप्त होते हैं, वे सुख चाहे मुझे प्राप्त हों या न हों, किन्तु मैं तो निश्चय ही मोक्ष सुख प्राप्त करने के लिए धर्म की शरण ग्रहण करता हूँ।
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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