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________________ 20 : चउसरणपइण्णय कौन थे, यह जिज्ञासा की जा सकती है। जैन परम्परा में वीरभद्र को महावीर के साक्षात शिष्य के रूप में उल्लिखित किया जाता है। किन्तु प्रकीर्णक ग्रन्थों की विषयवस्तु का अध्ययन करने से यह फलित होता है कि वे भगवान महावीर के समकालीन नहीं हैं। एक अन्य वीरभद्र का उल्लेख वि० सं० 1008 का मिलता है। संभवतः कुशलानुबंधी चतुःशरण की रचना इन्हीं वीरभद्र के द्वारा हुई हो। हमारे इस कथन की पुष्टि इस कारण भी होती है कि कुशलानुबन्धी चतुःशरण का उल्लेख नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में वर्गीकृत आगमों की सूची में नहीं है। कुशलानुबंधी चतुःशरण एवं चतुःशरण प्रकीर्णक का रचनाकाल . नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में आगमों का जो वर्गीकरण किया गया है उसमें कुशलानुबंधी चतुःशरण प्रकीर्णक का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। तत्वार्थ भाष्य और दिगम्बर परम्परा की सर्वार्थसिद्धि टीका में भी कुशलानुबंधी चतुःशरण प्रकीर्णक का कहीं कोई उल्लेख नहीं हुआ है। इसी प्रकार यापनीय परम्परा के ग्रन्थों में भी कहीं भी कुशलानुबंधी चतुःशरण प्रकीर्णक का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है। इससे यही फलित होता है कि छठी शताब्दि से पूर्व इस ग्रन्थ का कोई अस्तित्व नहीं था। कुशलानुबंधी चतुःशरण प्रकीर्णक का सर्वप्रथम उल्लेख विधिमार्गप्रपा में मिलता है। इसका तात्पर्य यह है कि कुशलानुबंधी चतुःशरण प्रकीर्णक नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र के परवर्ती अर्थात् छठी शताब्दि के पश्चात् तथा विधिमार्गप्रपा अर्थात् 14 वीं शती से पूर्व अस्तित्व में आ चुका था। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि ग्रन्थ की गाथा में ग्रन्थ के रचयिता के रूप में जिन वीरभद्र का नामोल्लेख हुआ है, वे भी ग्यारहवीं शताब्दि के आचार्य रहे हैं। अतः यदि हम रचनाकाल को और सीमित करना चाहें तो यह कालावधि ग्यारहवीं शताब्दि से चौदहवीं शताब्दि के मध्य कभी मानी जा सकती है। 1. The Canonical Literature of the Jainas, Page-51-52.
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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