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________________ भूमिका : 13 कुशलानुबंधी चतुःशरण अपरनाम चतुःशरण का सर्वप्रथम उल्लेख हमें विधिमार्गप्रपा (जिनप्रभ1 4वीं शताब्दी) में उपलब्ध होता है। उसमें प्रकीर्णकों में देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, मरणसमाधि, महाप्रत्याख्यान, आतुर प्रत्याख्यान, संस्तारक, चन्द्रवैद्यक, भक्तपरिज्ञा, वीरस्तव, गणिविद्या, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और संग्रहणी के साथ चतुःशरण का भी उल्लेख हुआ है।' विधिमार्गप्रपा में आगम ग्रन्थों के अध्ययन की जो विधि प्रज्ञप्त की गई है, उसमें चतुःशरण के पश्चात् वीरस्तव का उल्लेख है। विधिमार्गप्रपा में चतुःशरण का उल्लेख होना यह सिद्ध करता है कि उसे चौदहवीं शताब्दी में एक प्रकीर्णक के रूप में मान्यता प्राप्त थी। सामान्यतया प्रकीर्णकों का अर्थ विविध विषयों पर संकलित ग्रन्थ ही किया जाता है। नन्दीसूत्र के टीकाकार मलयगिरि के अनुसार तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते थे / परम्परागत मान्यता है कि प्रत्येक श्रमण एक प्रकीर्णक की रचना करता था। समवायांगसूत्र में “चौरासीइं पइण्णग सहस्साइं", कहकर ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के चौरासी हजार प्रकीर्णकों की ओर संकेत किया गया है। आज प्रकीर्णकों की संख्या निश्चित नहीं है। किन्तु वर्तमान में 45 आगमों में 10 प्रकीर्णक माने जाते हैं। ये 10 प्रकीर्णक निम्नलिखित ___ 1. चतुःशरण 2. आतुरप्रत्याख्यान 3. महाप्रत्याख्यान 4. भक्तपरिज्ञा 5. तन्दुलवैचारिक 6. संस्तारक 7. गच्छाचार 1.देवंदत्थयं-तंदुलवेयालिय-मरणसमाहि-महापच्चक्खाण-आउरपच्चक्खाण संथारयचंदाविज्झय-चउसरण-वीरत्थय-गणिविज्जा-दीवसागरपण्णत्ति-संगहणी-गच्छायारंइच्चाइपइण्णगाणि / इक्किक्केणं निविएण वच्चंति / -विधिमार्गप्रपा, सम्पा. जिनविजय, पृष्ठ 57-58 2.समवायांगसूत्र : संपा. मुनि मधुकर प्रका• श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण 1982, 84 वां समवाय, पृष्ठ 143
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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