SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 : चउसरणपइण्णयं . नन्दिसूत्र और पाक्षिक सूत्र में मिलने वाले उपरोक्त वर्गीकरण में उत्कालिक सूत्रों के वर्ग में देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रकवैद्यक, गणिविद्या, मरणविभक्ति, आतुरप्रत्याख्यान और महाप्रत्याख्यान-ये सात नाम तथा कालिक सूत्रों के वर्ग में ऋषिभाषित और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति- ये दो नाम अर्थात् वहां कुल नौ प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है।' किन्तु उपरोक्त वर्गीकरण में कुशलानुबन्धी चतुःशरण एवं चतुःशरण इन दोनों ही प्रकीर्णकों का कहीं भी उल्लेख नहीं है। तत्वार्थ भाष्य और दिगम्बर परम्परा की. तत्वार्थ की टीका सर्वार्थसिद्धि में जहां अंग बाह्य चौदह ग्रन्थों का उल्लेख है, उनमें भी कुशलानुबन्धी चतुःशरण और चतुःशरण का उल्लेख नहीं हुआ है। इसी प्रकार यापनीय परम्परा के ग्रन्थों मूलाचार, भगवती आराधना आदि की टीका में यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र, दशाश्रुतस्कंध, व्यवहार, वृहतकल्प, जीतकल्प और निशीथसूत्र आदि सूत्रों के उल्लेख तो मिलते हैं किन्तु उनमें भी कहीं भी कुशलानुबंधी चतुःशरण और चतुःशरण प्रकीर्णक का उल्लेख नहीं मिलता है। - मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित एवं श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित पइण्णयसुत्ताई भाग -1 पुस्तक में यद्यपि कुशलानुबंधी चतुःशरण और चतुःशरण इन दो प्रकीर्णकों को पृथक-पृथक प्रकीर्णक माना गया है और इनमें क्रमशः 63 एवं 27 गाथाएँ हैं। ज्ञातव्य है कि चतुःशरण का ही अपरनाम कुशलानुबधी अध्ययन भी है। अतः प्रकीर्णकों के वर्गीकरण की शैली में अधिकांश विद्वानों ने कुशलानुबंधी चतुःशरण और चतुःशरण को पृथक- पृथक प्रकीर्णक नहीं मानकर केवल चतुःशरण नाम ही दिया है किन्तु हमने अपने प्रस्तुत ग्रन्थ का मूल आधार मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित पइण्णयसुत्ताइं पुस्तक को ही माना है और उसमें ये दोनों प्रकीर्णक पृथक-पृथक नाम से उल्लेखित हैं। अतः हमने भी यहां इन दो प्रकीर्णकों को पृथक-पृथक रूप में ही उल्लेखित किया है। 1 (क) नन्दीसूत्र : संपा. मुनि मधुकर, प्रका• श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, वर्ष 1982, पृष्ठ 161-162 (ख) पाक्षिकसूत्र : प्रका• देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, पृष्ठ 76
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy