________________ राजर्षि कुमारपाल जुरप्यतिचतुरः शान्तोऽप्याज्ञादिवस्पतिः। क्षमावानप्यधृष्यश्च स चिरं मामविष्यति // स आत्मसदृशं लोकं धर्मनिष्ठं करिष्यति / विद्यापूर्णमुपाध्याय इवान्तेवासिनं हितः॥ . शरण्यः शरणेच्छनां परनारीसहोदरः। प्राणेभ्योऽपि धनेभ्योऽपि स धर्म बहु मंस्यते // पराक्रमेण धर्मेण दानेन दययाज्ञया / अन्यैश्च पुरुषगुणैः सोऽद्वितीयो भविष्यति // यहाँ पर हेमचन्द्रसूरि भविष्य पुराणकी वर्णन पद्धतिके अनुसार महावीरके मुखसे कुमारपालका भावी वर्णन इस प्रकारसे करवाते हैं कि- "चौलुक्य वंशमें चन्द्रमाके समान सौम्य और महावाहु एवं प्रचंड रीतिसे अपना अखंड शासन चलाने वाला कुमारपाल राजा होगा। वह धर्मवीर, दानवीर और युद्धवीरके गुणों से महात्मा कहलायेगा और पिताकी भाँति अपनी प्रजाका पालन करके उन्हें परम सम्पत्तिशाली बनायेगा। वह खभावसे सरल होने पर भी अति चतुर होगा, क्षमावान होने पर भी वह अधृष्य होगा और इस प्रकार चिरकाल तक पृथ्वीका पालन करेगा। जिस प्रकार उपाध्याय अपने शिष्यको पूर्ण विद्यावान् बनाता है उसी प्रकार कुमारपाल भी अपने समान दूसरे लोगोंको भी धर्मनिष्ठ बनायेगा / शरणार्थियोंको शरण देने वाला, परखियोंके लिए भाईके समान निष्काम एवं प्राण और धनसे भी धर्मको ज्यादा मानने वाला होगा / इस प्रकार पराक्रम, धर्म, दान, दया, आज्ञा और इसी प्रकारके दूसरे पौरुष गुणोंमें अद्वितीय होगा।" हेमचन्द्ररि द्वारा आलेखित गुणोंके इस रेखाचित्रमें वास्तविकताकी दृष्टिसे किंचित् मी व्यंग्य नहीं है, यह बात कुमारपालके जीवनके विषयमें जिन मुख्य मुख्य बातोंका मैंने यहाँ वर्णन किया है उनसे निस्सन्देह सिद्ध होती है। गुर्जरेश्वरोंके राजपुरोहित नागरश्रेष्ठ महाकवि सोमेश्वर कीर्तिकौमुदी नामक अपने काव्यमें कुमारपालकी कीर्ति-कथाका वर्णन करते समय हेमचन्द्रके उपरोक्त 5-6 श्लोकोंके भावका निचोड़ देता है और वह हेमाचार्यके भावसे भी ज्यादा सत्त्वशाली है / सोमेश्वर कहता है कि-. पृथुप्रभृतिभिः पूर्वैर्गच्छद्भिः पार्थिवैर्दिवम् / खकीयगुणरत्नानां यत्र न्यास इवार्पितः // न केवलं महीपालाः सायकैः समराङ्गणे / गुणैलॊकंपृणैर्येन निर्जिताः पूर्वजा अपि // अर्थात् - "पुराण कालमें पृथु आदि जितने महागुणवान् राजा हो गये हैं उन्होंने अपने गुणरूपी रत्नों की धरोहर खर्गमें जाते समय मानों कुमारपालको सौंप दी हो, ऐसा प्रतीत होता है। [यदि ऐसा न होता तो इस कलिकालोत्पन्न राजामें ऐसे सात्त्विक गुणोंका समुच्चय कहाँसे होता !] कुमारपालने अपने बाणोंसे समरांगणमें राजाओंको ही नहीं जीता था अपितु लोकप्रिय गुणोंसे अपने पूर्वजोंको भी जीत लिया था।" सोमेश्वरका यह कथन कुमारमालकी जीवनसिद्धिके भावको संपूर्ण रूपसे व्यक्त करने वाला उत्कृष्ट रेखाचित्र है। गुजरात की पुरातन संस्कृतिके सर्वसंग्रहालयमें यह चित्र केन्द्रस्थानकी शोभा प्राप्त करे / * *