________________ 158 हेमचन्द्राचार्यकृत-कुमारपालचरितवर्णनम् अपूजितेषु चैत्येषु गुरुष्वप्रणतेषु च / न भोक्ष्यते स धर्मज्ञः प्रपन्नश्रावकवतः // 63 // अपुत्रमृतपुंसां स द्रविणं न अहिष्यति / विवेकस्य फलं ह्येतदतृप्ता ह्यविवेकिनः // 64 // पाण्डुप्रभृतिभिरपि त्यक्ता या मृगया न हि / स स्वयं त्यक्ष्यति जनः सर्वोऽपि च तदाज्ञया // 65 // हिंसानिषेधके तस्मिन् दूरेऽस्तु मृगयादिकम् / अपि मत्कूट-यूकादि नान्त्यजोऽपि हनिष्यति // 66 // तस्मिन् निषिद्धपापर्डावरण्ये मृगजातयः / सदाऽप्यविघ्नरोमन्था भाविन्यो गोष्ठधेनुवत् // 67 // जलचर-स्थलचर-खेचराणां स देहिनाम् / रक्षिष्यति सदा मारिं शासने पाकशासनः // 68 // ये चाजन्मापि मांसादास्ते मांसस्य कथामपि / दुःस्वप्नमिव तस्याज्ञावशान्नेष्यन्ति विस्मृतिम् // 69 // दाशाहन परित्यक्तं यत् पुरा श्रावकैरपि / तन्मद्यमनवद्यात्मा स सर्वत्र निरोत्स्यति // 7 // . स तथा मद्यसन्धानं निरोत्स्यति महीतले / न यथा मद्यभाण्डानि घटयिष्यति चयपि // 71 // मद्यपानां सदा मद्यव्यसनक्षीणसंपदाम् / तत्राज्ञात्यक्तमद्यानां प्रभविष्यन्ति संपदः // 72 // नलादिभिरपि मापै—तं त्यक्तं न यत् पुरा / तस्स खवैरिण इव नामाप्युन्मूलयिष्यति // 73 // पारापतपणक्रीडाकुक्कुटायोधनान्यपि / न भविष्यन्ति मेदिन्यां तस्योदयिनि शासने // 74 // स प्रायेण प्रतिग्राममपि निःसीमवैभवः / करिष्यति महीमेतां जिनायतनमण्डिताम् // 75 // प्रति ग्राम प्रति पुरमा समुद्रं महीतले / रथयात्रोत्सवं सोऽर्हत्रतिमानां करिष्यति // 76 // दायं दायं द्रविणानि विरचय्यानृणं जगत् / अङ्कयिष्यति मेदिन्यां स संवत्सरमात्मनः // 77 // . प्रतिमां पांशुगुप्तां तां कपिलर्षिप्रतिष्ठिताम् / एकदा श्रोष्यति कथाप्रसङ्गे स गुरोर्मुखात् // 78 // पांशुस्थलं खानयित्वा प्रतिमा विश्वपावनीम् / आनेष्यामीति स तदा करिष्यति मनोरथम् // 79 // तदैव मन उत्साहं निमित्तान्यपराण्यपि / ज्ञात्वा निश्चेष्यते राजा प्रतिमा हस्तगामिनीम् // 8 // ततो गुरुमनुज्ञाप्य नियोज्यायुक्तपूरुषान् / प्रारप्स्यते खानयितुं स्थलं वीतभयस्य तत् // 81 // सत्त्वेन तस्य परमाहतस्य पृथिवीपतेः / करिष्यति च सांनिध्यं तदा शासनदेवता // 82 // राज्ञः कुमारपालस्य तस्य पुण्येन भूयसा / खन्यमानस्थले मङ्ख प्रतिमाऽऽविर्भविष्यति // 83 // तदा तस्यै प्रतिमायै यदुदायनभूभुजा / ग्रामाणां शासनं दत्तं तदप्याविर्भविष्यति // 84 // . नृपायुक्तास्तां प्रतिमा प्रत्नामपि नवामिव / रथमारोपयिष्यन्ति पूजयित्वा यथाविधि // 85 // पूजाप्रकारेषु पथि जायमानेष्वनेकशः / क्रियमाणेष्वहोरात्रं सङ्गीतेषु निरन्तरम् // 86 // तालिकारासकेषूच्चैर्भवत्सु ग्रामयोषिताम् / पञ्चशब्देष्वातोयेषु वाद्यमानेषु संमदात् // 87 // पक्षद्वये चामरेषूत्पतत्सु च पतत्सु च / नेष्यन्ति प्रतिमां तां चायुक्ताः पत्तनसीमनि // 88 // -त्रिभिर्विशेषकम् // सान्तःपुरपरीवारश्चतुरङ्गचमूवृतः / सकलं सचमादाय राजा तामभियास्यति // 89 // खयं रथात् समुत्तार्य गजेन्द्रमधिरोद्य च / प्रवेशयिष्यति पुरे प्रतिमां तां स भूपतिः // 9 // उपस्वभवनं क्रीडाभवने संनिवेश्य ताम् / कुमारपालो विधिवत् त्रिसन्ध्यं पूजयिष्यति // 91 // प्रतिमायास्तथा तस्या वाचयित्वा स शासनम् / उदायनेन यद् दत्तं तत् प्रमाणीकरिष्यति // 92 / / प्रतिमायाः स्थापनार्थ तस्यास्तत्रैव पार्थिवः / प्रासादं स्फटिकमयममायः कारयिष्यति // 93 // प्रासादोऽष्टापदस्पेव युवराजः स कारितः / जनयिष्यति संभाव्यो विस्मयं जगतोऽपि हि // 94 / / स भूपतिः प्रतिमया तत्र स्थापितया तया / एधिष्यते प्रतापेन ऋद्ध्या निःश्रेयसेन च // 95 // देवभत्स्या गुरुभक्त्या त्वपितुः सदृशोऽभय।। कुमारपालो भूपालः स भविष्यति भारते // 96 //