________________ श्रीमद्-हेमचन्द्राचार्यविरचितत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितान्तर्गत-महावीरचरितस्थं कुमारपालचरितवर्णनम् / [द्वादशसर्गात् समुद्धृतम्] पृच्छति स्माभयोऽथैवं कपिलर्षिप्रतिष्ठिता / प्रकाशमेष्यति कदा प्रतिमा पारमेश्वरी // 36 // खाम्याख्याति स्म सौराष्ट्र-लाट-गूर्जरसीमनि / क्रमेण नगरं भावि नामाऽणहिलपाटकम् // 37 // आर्यभूमेः शिरोरत्नं कल्याणानां निकेतनम् / एकातपत्राद्धर्म तद्धि तीर्थ भविष्यति // 38 // चैत्येषु रत्नमय्योईप्रतिमास्तत्र निर्मलाः / नन्दीश्वरादिप्रतिमाकथां नेष्यन्ति सत्यताम् // 39 // भासुरवर्णकलशश्रेण्यलङ्कतमौलिभिः / रोचिष्यते च तचैत्यैर्विश्रान्ततपनैरिव // 4 // श्रमणोपासकस्तत्र प्रायेण सकलो जनः / कृतातिथिसंविभागो भोजनाय यतिष्यते // 41 // परसंपधनीर्ष्यालुः संतुष्टश्च खसंपदा / पात्रेषु दानशीलश्च तत्र लोको भविष्यति // 42 // श्राद्धाश्च धनिनस्तत्रालकायामिव गुह्यकाः / वप्स्यन्ति द्रविणं सप्तक्षेत्र्यामत्यन्तमाईताः // 43 // परख-परदारेष सर्वः कोऽपि परानखः। भावी तस्मिन् पुरे लोकः सुषमाकालभरिव // 44 // अस्मन्निर्वाणतो वर्षशतान्यमय ! षोडश / नवष्टिश्च यास्यन्ति यदा तत्र पुरे तदा // 45 // कुमारपालो भूपालचौलुक्यकुलचन्द्रमाः / भविष्यति महाबाहुः प्रचण्डाखण्डशासनः // 46 // स महात्मा धर्म-दान-युद्धवीरः प्रजां निजाम् / ऋद्धिं नेष्यति परमां पितेव परिपालयन् // 47 // ऋजुरप्यतिचतुरः शान्तोऽप्याज्ञादिवस्पतिः / क्षमावानप्यधृष्यश्च स चिरं क्ष्मामविष्यति // 48 // स आत्मसदृशं लोकं धर्मनिष्ठं करिष्यति / विद्यापूर्णमुपाध्याय इवान्तेवासिनं हितः॥४९॥ शरण्यः शरणेच्छूनां परनारीसहोदरः / प्राणेभ्योऽपि धनेभ्योऽपि स धर्म बहु मंस्यते // 50 // पराक्रमेण धर्मेण दानेन दययाऽऽज्ञया / अन्यैश्च पुरुषगुणैः सोऽद्वितीयो भविष्यति // 51 // स कौबेरीमा तुरुष्कमैन्द्रीमा त्रिदशापगाम् / ___याम्यामा विन्ध्यमा वार्घि पश्चिमां साधयिष्यति // 52 // अन्यदा वज्रशाखायां मुनिचन्द्रकुलोद्भवम् / आचार्य हेमचन्द्रं स द्रक्ष्यति क्षितिनायकः // 53 // तद्दर्शनात् प्रमुदितः केकीवाम्बुददर्शनात् / तं मुनि वन्दितुं नित्यं स भद्रात्मा त्वरिष्यते // 54 // तस्य सूरेर्जिनचैत्ये कुर्वतो धर्मदेशनाम् / राजा सश्रावकामात्यो वन्दनाय गमिष्यति // 55 // तत्र देवं नमस्कृत्य स तत्त्वमविदन्नपि / वन्दिष्यते तमाचार्य भावशुद्धेन चेतसा // 56 // स श्रुत्वा तन्मुखात् प्रीत्या विशुद्धां धर्मदेशनाम् / अणुव्रतानि सम्यक्त्वपूर्वकाणि प्रपत्स्यते // 57 // स प्राप्तबोधो भविता श्रावकाचारपारगः / आस्थानेऽपि स्थितो धर्मगोठ्या खं रमयिष्यति // 58 // अन्नशाकफलादीनां नियमांश्च विशेषतः / आदास्यते प्रत्यहं स प्रायेण ब्रह्मचर्यकृत् // 59 // साधारणस्त्रीन परं स सुधीर्वर्जयिष्यति / धर्मपत्नीरपि ब्रह्म चरितुं बोधयिष्यति // 6 // मुनेस्तस्योपदेशेन जीवाजीवादितत्त्ववित् / आचार्य इव सोऽन्येपामपि योधि प्रदास्यति // 61 // . येऽर्हद्धर्मद्विषः केऽपि पाण्डुराहृद्विजादयः / तेऽपि तस्याज्ञया गर्भश्रावका इव भाविनः // 12 // 5.पा.च.१८