________________ कुमारपालप्रतिबोध-संक्षेप कणय-कमलेहिं गुरुणो चलण जुयं अचिऊण पणमेइ / तत्तो कयंजलि-उडो नरवइणो कुणइ पणिवायं // . तो पत्थिवेण भणियं-किमत्यमेत्थाऽऽगओ इमो लोओ ? / एक्केण सावएणं भणियमिणं सुण महाराय !.. पूर्व वीरजिनेश्वरेऽपि भगवत्याख्याति धर्म स्वयं प्रज्ञावत्यभयेऽपि मत्रिणि न यां कर्तुं क्षमः श्रेणिकः / अक्लेशेन कुमारपालनृपतिस्ता जीवरक्षा व्यधालब्ध्वा यस्य वचःसुधां स परमः श्रीहेमचन्द्रो गुरुः // तत्पादाम्बुजपांशुभिः प्रथयितुं शुद्धि परामात्मनस्तद्वक्वेन्दुविलोकनेन सफलीकतुं निजे लोचने / तद्वाक्यामृतपानतः श्रवणयोराधातुमत्युत्सवं भक्त्युत्कर्षकुतूहलाकुलमना लोकोऽयमत्रागतः / / ता नरनाह ! कयत्था अम्हे, अम्हाण जीवियं सहलं / जहिं नमिओ मुणिंदो पञ्चक्खो गोयमो व इमो॥ जिणधम्मे पडिवत्ती दूसम-समए असंभवा तुज्झ / देसंतर-हिएहिं सोउं दिहा य पञ्चक्खं // संपइ वचिस्सामो सुरह-देसम्मि तित्थ-नमणत्थं / अन्न-समयम्मि होही मग्गेसु किमेरिसं सुत्थं 1 // 295 1.. 20. कुमारपालस्य तीर्थयात्राकरणम् / रन्ना भणियं - भयवं! सुर-विसयम्मि अस्थि किं तित्थं / तो गुरुणा वागरियं-पत्थिव! दो तत्थ तित्थाई // जत्थ सिरि-उसभसेणो पढम-जिणिदस्स गणहरो पढमो / सिद्धिं गओ तमेकं सत्तुंजय-पचओ तित्थं // पीयं तु उजयंतो नेमिजिणिदस्स जंमि जायाई / कलाणाई निक्खमण-नाण-निवाण-गमणाई // रना भणियं-भयवं ! अहं पि तित्थाण ताण नमणत्थं / वच्चिस्सामि अवस्सं, गुरुणा भणियं इमं जुनं // जं तित्थ-वंदणेणं सम्मत्त-थिरत्तमत्तणो होइ / तप्पूयणेण जायइ अथिरस्स धणस्स सहलतं // अन्नेसि पि जणाणं सद्धा-वुड्डी कया हवइ बाढं / सेवंति परे वि धुवं उत्तम-जण-सेवियं मग्गं // इय गुरु-वयणं सोउं राया पसरिय-अतुच्छ-उच्छाहो / सम्माणिउं विसजइ देसंतर-संतियं लोयं // सोहण-दिणे सयं पुण चलिओ चउरंग-सेन्न-परियरिओ। चउ-विह-संघ-जुएणं गुरुणा सह हेमचंदेण // ठाणे ठाणे पट्टेसुएहिं पूयं जिणाण सो कुणइ / किं तत्थ होइ थेवं जत्थ सयं कारओ राया // तत्तो कमेण रेवय-पवय-हिढे ठियस्स नयरस्स / गिरिनयरस्सासन्ने गंतुं आवासिओ राया // 21. उज्जयन्तासन्न-गिरिनगरवर्णनम् / तत्थ नरिंदेण दसार-मंडवो भुवण-मंडणो दिट्ठो / तह अक्खाडय-सहिओ आवासो उग्गसेणस्स // विम्हिय-मणेण रन्ना मुणि नाहो पुच्छिओ किमेयं ति / भणइ गुरू गिरिनयरं ठाणमिणं उग्गसेणस्स // पारवईए पुरीए समुद्दविजयाइणो दस दसारा / आसि असि-भिन्न अरिणो जायव-कुल-विंझ-गिरिकरिणो // तत्य दसमो दसारो वसुदेवो तस्स नंदणो कण्हो / सो आसि तत्थ राया ति-खंड-महि-मंडलस्स पहू // . पुत्तो समुद्दविजयस्स आसि कुमरो अरिट्टनेमि त्ति / बावीसइमो तित्थंकरो ति चारित्त-कय-चित्तो // . अविसय-तण्हो कण्होवरोहओ उग्गसणे-राय-सुयं / राइमई परिणेउं सो चलिओ रहवरारुढो // करि-तुरय-रहारूढेहिं कण्ह-पमुहेहिं पवर-सयणेहिं / सहिओ समागओ उग्गसेण-निव-मंदिरासन्नं // 'सोऊण करुण-सदं जा दिदि देइ तत्थ ता नियइ / रुद्धे पसु सस-सूअर-उरम्भ-हरिणाइणो जीवे // तस्सद्द-जग्गिय-दओ किमिमे रुद्ध ति पुच्छए कुमरो / तो सारहिणा भणियं-कुमार! सुण कारणं एत्य // . हणिउं इमे वराए इमाण मंसेण भोयणं दाही / तुज्झ विवाहे वेवाहियाण सिरि-उग्गसेण-निवो / तो भणियं कुमरेणं घिद्धी ! परिणयणमेरिसं जत्थ / भव-कारागार-पवेस-कारण कीरए पावं // भोगे भुयंग-भोगेध भीसणे दूरओ लहुं मुत्तुं / संसार-सागरुत्तरण-संकमं संजमं काहं / /