________________ 159 सोमप्रभाचार्यकत१७. गुरुतत्वोपदेशः। बह गुरुणा वागरियं देव-सरूवं जहद्वियं तुमए / मुणियं, नरिंद ! संपइ गुरु तत्तं तुज्य अक्खेमि // भत्यमिएसु जिणेसुं सूरेसु व हरिय-मोह-तिमिरेसु / जीवाइ-पयत्थे दीवओ व पयडइ गुरु चेय // गुरुदेसणा-वरत्त-वर-गुण-गुच्छं विणा गहीराओ / संसार-कूव-कुहराउ निग्गमो नत्थि जीवाणं // गुरुणो कारुन-घणस्स देसणा-पय-भरेण सित्ताण / भविय-दुमाणं विज्झाइ झत्ति मिच्छत्त-दावग्गी // . जो चत्त-सच्च-संगो जिइंदिओ जिय-परीसह-कसाओ / निम्मल-सील-गुणड्डो सो चेय गुरू न उण अन्बो / / नरय-गइ-गमण-जुग्गे कए वि पावे पएसिणा रना / जं अमरत्तं पत्तं तं गुरु-पाय-प्पसाय-फलं // [अत्र प्रदेशिराजादीनां कथा अनुसन्धेयाः।] 18. गुरुसेवाफलविषये सम्प्रतिपोदाहरणम् / चिंतामणि-कप्पडुम-कामदुहाईणि दिव-वत्थूणि / जण-वंछियत्थ-करणे न गुरूणि गुरु-प्पसायाओ॥ 10 जो पेच्छिऊण पावंति पाणिणो मणुय-तियस-सिद्धि-सुहं / करुणा-कुल-भवणाणं ताण गुरुणं कुणह सेवं // दमगो वि पुव-जम्मे जं महिवइ-निवह-नमिय-पय-कमलो / जाओ संपइराओ तं गुरु-चलणाण माहपं // . __ [भत्र सम्प्रतिनृपकथा परिकथिता।] 19. सम्प्रतिनृपतेरिव कुमारपालस्य रथयात्रोत्सवकरणम् / / इय संपइनिव-चरियं निसामियं हेमसूरि-पहु-पासे / राया कुमारवालो तहेव कारवइ रहजतं // तं जहानचंत-रमणि-चक्कं विसाल-अलि-थाल-संकुलं राया / कुणइ कुमारविहारे सासय-अट्ठाहिया महिमं // नट्ठ-कम्ममह वि दिणाई सयमेव जिणवरं ण्हविउं / गुरु-हेमचंद-पुरओ कयंजली चिढइ नरिंदो // अट्ठम-दिणम्मि चित्तस्स पुण्णिमाए चउत्थ-पहरम्मि / नीहरइ जिण-रहो रवि-रहो व आसाओ पयर्डतो // ण्हविय-विलितं कुसुमोह-अच्चियं तत्थ पासजिण-पडिमं / कमरविहार-दवारे महायणो ठवह रिद्धीए.॥ तूर-रव-भरिय-भवणो स-रहस-नचंत-चारु-तरुणि-गणो / सामंत-मंति-सहिओ वच्चइ निव-मंदिरम्मि रहो // राया रहत्थ-पडिमं पटुंसुय-कणय-भूसणाईहिं / सयमेव अचिउं कारवेइ विविहाई नट्टाई॥ तत्थ गमिऊण रयणि नीहरिओ सीहवार-बाहिमि / ठाइ पवंचिय-धय-तंडवम्मि पड-मंडवम्मि रहो // 1. तत्थ पहाए राया रह-जिण-पडिमाइ विरइउं पूयं / चउविह-संघ-समक्खं सयमेवारत्तियं कुणइ // तचो नयरम्मि रहो परिसक्का कुंजरेहिं जुत्तेहिं / ठाणे ठाणे पड-मडवेसु विउलेसु चिट्ठतो // . किञ्चप्रेङ्खन्मण्डपमुलसद्ध्वजपटं नृत्यदधूमण्डलं चञ्चन्मञ्चमुदञ्चदुच्चकदलीस्तम्भं स्फुरत्तोरणम् / विष्वग्जैनरथोत्सवे पुरमिदं व्यालोकितुं कौतुकालोका नेत्रसहस्रनिर्मितिकृते चक्रुर्विधेः प्रार्थनाम् // एवं अट्ट-दिणाई रह-जतं जणिय-जण-चमक्कारं / कुणइ जहा कुमरनियो तहेव आसोय-मासे वि // अंपा निय-मंडलिए एवं तुन्भे वि कुणह जिणधम्म / ते निय-निय-नयरेसुं कुमरविहारे करावंति // 1 // विरयंति वित्थरेणं जिण-रह-जत्तं कुणंति मुणि-भत्ति / तत्तो समग्गमेयं जिणधम्म-मयं जयं जायं // ... अब-दिणम्मि मुर्णिदो कुमरविहारे कुमारवालस्स / चउ-विह-संघ-समेओ चिहइ धम्मं पयासतो // बहु-विह-देसेहितो धणवंतों तत्थ आगओ लोओ / प{सुय-कणय-विभूसणेहिं काऊण जिणपूयं //