________________ 78 35. 356. 357. 358. // 360. 361. पुरातनाचार्यसंगृहीत अमओ अ होइ जीवो कारणविरहा जहेवमागासं / समयं च होइ अणिचं मिम्मयघडतंतुमाईयं // संकोअ-विकोएहि य जह कम्मं देहलोअमित्तु छ / हत्थिस्स व कुंथुस्स व पएससंखा समा चेव // आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसायलेसा य / आणापाणू इंदियबंधोदयनिजरा चेव // चित्तं वेयण सन्ना विनाणं धारणा य बुद्धी य / ईहा मई वियका जीवस्स उ लक्खणा एए // चित्तं तिकालविसयं वेअण पच्चक्ख सन्न अणुसरणं / विन्नाणणेगभेयं कालमसंखेयरं धरणा // अस्थस्स ऊहवुद्धी ईहा चिट्टत्थअवगमो उ मई। संभावणत्थ तक्का गुणपञ्चक्खा घडु व त्थि // जम्हा चित्ताईया जीवस्स गुणा हवंति पच्चक्खा / गुणपच्चक्खत्तणओ घडु व जीवा अओ अस्थि // लोइआ वेइआ चेव तहा सामाइआ विऊ / निचो जीवो पिहो देहा इति सचे ववहिआ॥ लोए अच्छिन्न अभिज्जो वेए स पुरीसदड्ड य सियालो। समए अहमासिगओ तिविहो दिवाइसंसारो॥ लोए वेए समए निचो जीवो विभासया अम्हं। इहरा संसाराई सबंपि न जुज्जए तस्स // जह आहारो भुत्तो जिआण परिणमइ सत्तभेएहिं। वससोणिअमंसट्ठियमज्जा तह मेयसुक्के य॥ एवं अट्ठविहं पि य जीवेण अणाइसहयं कम्मं / जह कणगं पाहाणे अणाइसंजोगनिप्पन्नं // जीवस्स य कम्मस्स य अणाइमं चेव होइ संजोगो। सो वि उवाएण पुढो कीरइ उवलाओं जह कणयं // किं पुत्वयरं कम्मं जीवो वा इत्थ कोइ पुच्छिज्जा। सो वत्तबो कुकुडि-अंडाणं भणसु को पढमो॥" जह अंडसंभवा कुकुडि त्ति अंडं पि कुकुडीइ भवं / न य पुच्चावरभावो जहेह तह कम्म-जीवाणं // जह कणगस्स उ कीरंति पजवा मउडकुंडलाईआ। वर्ष कणगं तं चिय नामविसेसो असो अन्नो॥ एवं चउग्गईए परिन्भमंतस्स जीवकणगस्स। नामाई बहुविहाइं जीवं वर्ष तयं व // 363. 364.. 366. 367. 199.