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________________ प्रकीर्णसमुद्देशः 197 मतवाले हाथी पर चढ़ने वाले का जीवन संशय में पड़ जाता है और नाश निश्चित रहता है। (अत्यर्थ ह्यश्वविनोदोऽङ्गभङ्गमनापाद्य न तिष्ठति // 46 // ) . घोडे के संग बहुत खिलवाड़ करने से कोई न कोई अङ्गभङ्ग हुए बिना नहीं रहता। (णमददानो दासकर्मणा निहरेत् // 50 // ऋण न दे सकने पर दास कर्म द्वारा ऋण दूर करना चाहिए। (अन्यत्र यतिब्राह्मणक्षत्रियेभ्यः // 51 // ___ यति, ब्राह्मण और क्षत्रियों को छोड़कर अर्थात् संन्यासीब्राह्मण और क्षत्रिय पर यदि ऋग हो और वह न दे सकें तो उनसे नौकरी लेकर ऋण नहीं पूरा करना चाहिए। तस्यात्मदेह एव वैरी यस्य यथालाभमशनं शयनं च न सहते // 52 // जो यथालाभ भोजन न कर सकें और सो न सकें उनके लिये अपना शरीर ही शत्रु के तुल्य होता है। (तस्य किमसाध्यं नाम यो महामुनिरिव सर्वान्नीनः सर्वक्लेशसहः सर्वत्र सुखशायी च // 53 / / ___जो महामुनि के समान सब प्रकार का और सब का अन्न ग्रहण कर ले, सब प्रकार का क्लेश सह ले और सर्वत्र सुखपूर्वक सो सके उसके लिए कोई भी काम असाध्य नहीं है। स्त्रीप्रीतिरिव कस्य नामेयं स्थिरा लक्ष्मीः // 54 // ) . स्त्री की प्रीति के समान यह लक्ष्मी भी किसके पास स्थिर रह सकी है ? (परपैशुन्योपायेन राज्ञां वल्लभो लोकः / / 55 // लोग दूसरों की चुगली और निन्दारूप उपाय से राजा के प्रियपात्र बनते हैं। (नीचो महत्त्वमात्मनि मन्यते परस्य कृतेनापवादेन // 56 // नीच पुरुष दुसरे की निन्दा करके अपना महत्त्व मानता है। न खलु परमाणोरल्पत्वेन महान् मेरुः किन्तु स्वगुणेन / / 57 // ) परमाणु सबसे छोटा पदार्थ है इस दृष्टि से महान् मेरु पर्वत की प्रशंसा नहीं की जाती, किन्तु उसके गुणों के कारण / ने खलु निनिमित्तं महान्तो भवन्ति कलुषितमनीषाः // 18 // ) महान् व्यक्ति बिना किसी कारण के ही किसी के प्रति कलुषित भावना वाले नहीं होते।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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