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________________ 192 नीतिवाक्यामृतम् सकना, और ध्वनि संकोच कर सकना, दूसरे राग में सरलता से परिवर्तन किया जा सकमा और स्वीकृत राग का पूर्ण निर्वाह होना एवं हृदय प्राहिता का होना यह सब गीत के गुण हैं | (समत्वं, तालानुयायित्वं, गेयाभिनेयानुगत्वं, श्लक्ष्णत्वं, प्रत्यक्तातप्रयोगत्वम् , श्रुतिसुखावहत्वं चेति वाद्यगुणाः // 10 // ___सम पर बजना, ताल के अनुसार रहना, नेत्र ओर अभिनेय अर्थात गीत और नाट्य के अनुरूप होना कोमलता, स्फुटयति का प्रयोग होना, और सुनने में प्रिय लगना ये वाद्य के गुण हैं।) (दृष्टि हस्तपादक्रियासु समसमायोगः, संगीतकानुगतत्वं, सुश्लिष्टललिताभिनयाङ्गहारप्रयोगभावो, रसभाववृत्तिलावण्यभाव इति नृत्यगुणाः // 11 // दृष्टि, हाथ और पैर का संचालन समान रूप से, ताल और लय के अनु. सार हो, जो संगीत छिड़ा हो उसका अनुसरण होना, बिना विच्छेद के अभिनयानुकूल अंगों का इधर उधर चलाना, शृङ्गारादि रस, आलम्बन उद्दीपन आदि भाव विभाव तथा कौशिकी आदि वृत्तियों के अनुरूप सौन्दयं का होना यह सब नस्य के गुण हैं। स खलु महान् यः खल्वातॊ न दुर्वचनं व्रते // 12 // जो दुःखी होने पर भी दुर्वचनों का प्रयोग नहीं करता वही व्यक्ति महान है। (स किं गृहाश्रमी यत्रागत्यार्थिनो न भवन्ति कृतार्थाः // 12 // जिसके पास आकर याचक गण सफल होकर न लौटें वह गृहस्थ गृहस्थ नहीं है। ऋणग्रहणेन धर्मः सुखं सेवा वणिज्या च तादाविकानां नायतिहित. वृत्तीनाम् 14) ___ इस समय अपना काम निकाल लो भविष्य में देखा जायगा-इस तरह के विचार वाले 'तादात्विक' लोग ही ऋण लेकर तीर्थ यात्रा, या आदि सांसारिक सुख भोग और किसी बड़े आदमी का स्वागत-सत्कार रूप सेवा कार्य तथा व्यापार करते हैं, किन्तु जो विवेकी हैं और उत्तर काल में अपना कल्याण चाहते हैं वे ऐसा नहीं करते / स्विस्य विद्यमानम् अर्थिभ्यो देयं नाविद्यमानम् // 15 // अपने पास जो वस्तु वर्तमान हो उसे ही याचकों को.देना चाहिए क कि जो न हो उसे भी ऋण बादि कर देना / ).
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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