________________ युद्धसमुद्देशः 182 (चलं बुद्धिभूमिर्ग्रहानुलोम्यं परोद्योगश्च प्रत्येकं बहुविकल्पं दण्डमण्डलामोगा संहतव्यहरचनायां हेतवः // 86 // सैन्यबल, बुद्धि, विस्तृतप्रदेश, ग्रहों की अनुकूलता, शत्रु का उद्योग, सैन्य मण्डल का अनेक प्रकार का विस्तार ये सुसंगठित न्यूह-रचना के कारण हैं।) (साधुरचितोऽपि व्यूहस्तावत्तिष्ठति यावन्न परबलदर्शनम् || 8 ||) सुसंगठित व्यूह रचना भी तभी तक स्थिर रहती है जब तक कि वह शत्रुसेना का अवलोकन नहीं करती-उसके अनन्तर संग्राम चिढ़ जाने पर व्यह का संगठन छिन्न भिन्न होने लगता है लोग यथावसर लड़ने के लिये इधर-उधर हो जाते हैं और व्यूह भंग हो जाता है। Fह शास्त्रशिक्षाक्रमेण योद्धव्यं किन्तु परप्रहाराभिप्रायेण // 8) संग्राम में शस्त्रविद्या की शिक्षा के अनुसार नहीं किन्तु शत्रु के प्रहार के अनुकूल युद्ध करना चाहिए। व्यसनेषु प्रमादेषु वा परपुरे सैन्यप्रेषणमवस्कन्दः // 8 // ___ जब शत्रु संकट में पड़ा हो अथवा असावधान हो तब शत्रु के नगर में विजिगीषु का अपनी सेना भेजना 'अवस्कन्द' है। (अन्याभिमुखं प्रयाणकमुपक्रम्यान्योपधातकरणं कूटयुद्धम् / / 60 // किसी दूसरी ओर के प्रस्थान की भूमिका रचकर दूसरी ओर आक्रमण करना 'कूटयुद्ध' है।) (विविषमषुरुषोपनिषदवाग्योगोपजापैः परोपघातानुष्ठानं तूष्णीं दण्डः / / 61 // ...शत्र के लिये विष प्रयोग घातक पुरुषों का प्रयोग उसके समीप जाना, सन्देश भेजना, मेदनीति से काम लेना ये 'तूष्णीं दण्ड' हैं। (एक बलस्याधिकृतं न कुर्यात् , भेदापराधेनैकः समर्थो जनयति महान्तमनर्थम् // 62 . . किसी एक व्यक्ति को समस्त सैन्य का पूर्ण अधिकार नहीं देना चाहिए, भेदापराध अर्थात् शत्रु से मिल जाने पर वह महान् उपद्रव कर सकता है। (अर्थात् सर्वाधिकार यदि किसी एक ही व्यक्ति के पास हुआ और किसी प्रकार यदि वह शत्रु से जा मिला तो अवश्य ही वह अपने स्वामो का सर्वनाश कर देगा।) . राजा राजकार्येषु मृतानां सन्ततिमपोषयन्नृणभागी स्यात् साधु नोपचर्यते तन्त्रेण // 13 // यदि राजकार्य करते हुये आदमियों के मृत हो जाने पर राजा उनकी सन्तति का पालन पोषण नहीं करता तो वह उनका ऋणी रहता है और