________________ पाड्गुण्यसमुद्देशः 165 निश्चित सिद्धान्त नहीं है क्योंकि शत्रुता और मित्रता के कारण कार्य हैं न कि दुरी और सामीप्य / बुद्धिशक्तिरात्मशक्तेरपि गरीयसी // 36 // बुद्धिबल आत्मबल से भी श्रेष्ठ है। सकिनेव सिंहव्यापादनमत्र दृष्टान्तः // 37 // शशक के द्वारा सिंह का मारा जाना इसका दृष्टान्त है। क्रोशंदण्डबल प्रभुशक्तिः // 38 // कोशबल और सैन्यबल का होना प्रभुशक्ति है / शूद्रकक्तिकुमारौ दृष्टान्तौ॥ 36 // इसमें शूद्रक और शक्तिकुमार दृष्टान्त हैं / राजा शूद्रक ने अपने विपुलकोष और प्रचुर सैन्यबलसे शक्तिकुमार का नाश कर दिया था। 'विक्रमोबलं चोत्साहशक्तिस्तत्र रामो दृष्टान्तः॥ 40 // पराक्रम और बल का होना उत्साहशक्ति है, जिसमें राम दृष्टान्त हैं। सफित्रयोपचितो ज्यायान , शक्तित्रयापचितो हीनः, समानशक्तित्रयः समः / / 41 / / तीनों शक्तियों से अभ्युदय को प्राप्त श्रेष्ठ, उक्त शक्तित्रय से हीन हीन धोर सम शक्तित्रय वाला व्यक्ति सम है। (सन्धि-विग्रह-यानासनसंश्रयद्वैधीभावाः षाड्गुण्यम् // 42 // मैत्री, वैर, आक्रमण, उपेक्षा करके बैठे रहना, आत्मसमर्पण और दो शत्रुओं में एक के साथ मैत्री करने के अनन्तर दूसरे पर आक्रमण = द्वैधीभावः राजा के लिये यह छह गुण समूह हैं। . . अपराधो विग्रहः // 14 // (विजयेच्छु राजा के प्रति कोई अनुचित करना विग्रह ( वैर ) है।) .. (अभ्युदयो यानम् // 4 // शत्रु पर चढ़ाई कर देना अथवा पलायन कर जाना 'यान' है। (उपेक्षणमासनम् // 45 // शत्रु के प्रति उपेक्षा भाव रख लेना 'आसन है।) . परस्यात्मार्पणं संश्रयः // 4 // शत्रु को आत्मसमर्पण करना संश्रय है।) (एकेन सह सन्धायान्येन सह विग्रहकरणमेकेन वा शत्रौ सन्धानपूर्व विग्रहों द्वैधीभावः // 4 // (जब राज्य पर एक साथ दो शत्रु चढ़ाई कर दे तब एक अपेक्षाकृत