________________ व्यवहारसमुद्देशः 151 विलास भोग में रत होना बेश्यागामी की पवित्रता तथा तत्वज्ञान अर्थात ब्रह्मज्ञान से पूर्व जानने योग्य बातों को जाने बिना तत्वज्ञान के लिये आग्रह करना ये पांच किसके लिये "शिरदर्द' नहीं होते अर्थात् इन बातों से सबको कष्ट होता है।) स हि पञ्च-महापातकी योऽशस्त्रमशास्त्रं वा पुरुषमभियुञ्जीत // 34 // ) जो व्यक्ति शस्त्र रहित अथवा शास्त्र ज्ञान से शून्य पुरुष से युद्ध अथवा शास्त्रार्थ के लिये प्रवृत्त होता हैं उसे पांच महापापों के करने का पाप होता है। (स्त्री, बालक, गो, ब्राह्मण और अपना स्वामी इनका वध पंच महापातक है। उपश्रुति श्रोतुमिव कार्यवशान्नीचमपि स्वयमुपसर्पेत् / / 34 // उपश्रुति सुनने के समान ही कार्यवश नीच के घर भी स्वयं जाना चाहिए। नक्तं निर्गस्य यत्किञ्चिच्छुभाशुभकरं वचः / श्रूयते तद्विदुर्बीरा देवप्रश्नमुपश्रुतिम् / / ( हारावली ) भविष्य का शुभ अशुभ बताने के लिये देवगण रात्रि में कुछ शब्द करते हैं इस विश्वास से रात्रि के समय घर से निकल कर उस शब्द को सुनने के लिये जो गम्य अगम्य स्थान पर जाकर उस शकुन को सुनते हैं उस देव प्रश्न को विद्वान् उपश्रुति कहते हैं। . वेश्यागमो गृहिणी गृहपति वा प्रत्यवसादयति // 36 // वेश्या के समागम से गृहिणी अथवा गृहपति का विनाश हो जाता है। (वेश्यासंग्रहो देवद्विजगृहिणीबन्धूनामुच्चाटनमन्त्रः / / 37 / / ) वेश्या से व्यवहार रखना देवता, ब्राह्मण अपनी स्त्री और बन्धुओं के लिये उच्चाटन मन्त्र के प्रयोग के समान है। (अहो लोकस्य पापं यन्निजस्त्री रतिरपि भवति निम्बसमा, परगृहीता शुन्यपि भवति रम्भासमा / / 3 / / ) पाप के विषय में लोगों को यह कैसी बिडम्बना है कि कामदेव की स्त्री रति के समान भी अपनी स्त्रो नीम के समान कड़वी अथवा अप्रिय लगती है और परपुरुष की स्त्रो कुतिया के समान क्षुद्र होने पर भी रम्भा देवलोक की अप्सरा के समान प्रिय लगती है। (स सुखी यस्य एकदैव दारपरिग्रहः / / 36 // सुखी वही है जिसकी एक ही स्त्री होती है।)