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________________ सदाचारसमुदेशः (अभिभवनमन्त्रेण परोपकारो महापातकिनां न महासत्त्वानाम् // 34 // ) किसी अभिलाषा से परोपकार करना महापातकियों का कार्य है, महापुरुषों का नहीं। (तस्य भूपतेः कुतोऽभ्युदयो जयो वा यस्य द्विषत्सभासु नास्ति गुणग्रहणप्रागल्भ्य म् / / 36 // . शत्रुओं को भी सभा में जिस राजा को कीत्ति का गान नहीं किया जाता उसका जय और अभ्युदय कैसा! अर्थात् राजा को इतना प्रभावशाली होना ' चाहिए कि शत्रु भी उसके गुणों और प्रभाव का लोहा माने / तस्य गृहे कुटुम्बं धरणीयं यत्र न भवति परेषामाभिषम् // 37 // आपत्ति के समय पलायन करते समय अपने कुटुम्ब को ऐसे व्यक्ति के यहां छोड़ जाना चाहिए जहाँ कुटुम्ब को दूसरे के द्वारा कोई हानि न हो। परस्त्रीद्रव्यरक्षणेन नात्मनः किमपि फलं विप्लवेन महाननर्थसम्बन्धः // 35 // ) दूसरे की स्त्री और द्रव्य रखने से अपना कोई लाभ नहीं होता किन्तु . यदि किसी प्रकार का उपद्रव हुआ तो उससे महान् अनर्थ होता है। (आत्मानुरक्तं कथमपि न त्यजेत् यथास्ति तदन्ते तस्य सन्तोषः // 36 // ) अपने यहां रहने में जिसे परम सन्तोष हो और जो अपने ऊपर अनुरागी हो ऐसे व्यक्ति का परित्याग कभी भी नहीं करना चाहिए। आत्मसंभावितः परेषां भृत्यानाभसहमानश्च भृत्यो हि बहुपरिजनमपि करोत्येकाकिनं स्वामिनम् // 40 // ) जो नौकरों की बढ़ती न देख सके बार अपने को बहुत बड़ा माने ऐसे भृत्य के होने से राजा के बहुत से भी सेवक धीरे-धीरे करके चले जाते हैं और राजा अकेला रह जाता है / अतः राजा को चाहिए कि वह सेवको में प्रमुख ऐसे. व्यक्ति को बनावे जो अपने साथी सेवकों की तरकी से प्रसन्न हो और स्वयं विनम्र स्वभाव का हो। . ... (अपराधानुरूपो दण्डः पुत्रेऽपि प्रणेतव्यः // 41 // ). अपराध के अनुसार पुत्र को भी दण्ड देना चाहिए। देशानुरूपः करो प्रायः / / 42 / / ) देश की स्थिति के अनुसार ही कर ग्रहण करना चाहिए। प्रतिपाद्यानुरूपं वचनम् उदाहर्त्तव्यम् / / 43 / / ) प्रतिपादन किये जाने वाले विषय के अनुकूल ही वाणी का प्रयोग करे। अर्थात् लोगों को जैसा विषय समझाना हो वैसी ही भाषा का व्यवहार करे। 10 नी०
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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