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________________ 136 दिवसानुष्ठानसमुद्देशः नियमितमनोवाकायः प्रतिष्ठेत // 13 // मन, वाणी और शरीर के संयम के साथ प्रस्थान करे। अहनि सन्ध्यामुपासीतानक्षत्रदर्शनात् / / 64 // प्रतिदिन नक्षत्र-दर्शनपर्यन्त सन्ध्यावन्दन करे। चतुः पयोधिपयोधराम् , धर्मवत्सवतीम् , उत्साह बालधिम् , वर्णाश्रमखुरां, कामार्थश्रवणां, नयप्रतापविषाणां, सत्यशौचचक्षुषं, न्यायमु. खीम्-इमां गां गोपयामि, अतस्तमहं मनसाऽपि न सहेयं योऽपराध्ये. त्तस्यै, इतीयं मन्त्रं समाधिस्थो जपेत् / / 65 // राजा को चाहिये कि वह एकाग्रचित्त होकर निम्नाङ्कित अर्थ के उपयुक्त मन्त्र का जप करे। चतुर्दिक के चार समुद्र जिसके चार थन हैं, धर्म जिसका बछड़ा है, उत्साह जिसकी पूछ है, चार वर्ण और चार आश्रम जिसके खुर हैं, काम और अर्थ जिसके कान हैं, नीति और प्रताप जिसकी सोंगें हैं, सत्य और शोच जिसकी आंखें हैं और न्याय जिसका मुख है- ऐसी इस गो रूप पृथ्वी की मैं रक्षा करता है। अतः जो कोई इस पृथ्वी के प्रति कोई अपराध करेगा उसको मैं मनसे भी नहीं सहन करूंगा। ___ कोकवहिवाकामो निशि स्निग्धं भजीत // 16 // चकवा-चकवी के समान दिन में काम-भोग चाहनेवाला व्यक्ति रात्रि में स्निग्ध पदार्थों का भोजन करे। चकोरवन्नक्तं कामो दिवा च // 12 // चकोर पक्षी के समान रात्रि में मैथुन-कर्म में प्रवृत्त होने का इच्छुक व्यक्ति दिन में स्निग्ध पदार्थों का भोजन करे। पारावतकामो वृष्यान्नयोगान् चरेत् / / 68 // कबूतर के समान अति कामी पुरुष वीर्यवर्धक व्यञ्जन ( पूड़ी, हलवा, मालपुआ, खीर ).आदि का सेवन करे। वष्कयणीनां सुरभीणां पयः सिद्धं माषदलपरमान्नं परो योगः स्मरसंवर्द्धने // 16 // . ज्यादा दिनों की व्याई हुई गायों के दूध में पकाई उड़द के दाल की खीर काम-शक्ति के संवर्धन के लिये सर्वोत्तम योग है। नावृषस्यन्तीं स्त्रीमभियायात् // 10 // कामेच्छा से हीन स्त्री के साथ संभोग न करे / उत्तरः प्रवर्षवान् प्रदेशः परमरहस्यमनुरागे प्रथमप्रकृतीनाम् // 101 // कामशास्त्र के अनुसार प्रथम प्रकृति अर्थात् वृष जाति के पुरुष और
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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