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________________ 112 नीतिवाक्यामृतम् फिरता स्वरूप है। धोड़े इतने चञ्चल और तीव्र गति वाले होते हैं कि वे सेना में गति उत्पन्न कर देते हैं। (अश्वबलप्रधानस्य हि राज्ञः कदनकन्दुकक्रीड़ाः प्रसीदन्ति श्रियः, भवन्ति दूरस्था अपि करस्थाः शत्रवः, आपत्सु सर्वमनोरथसिद्धयस्तुरङ्गमा एव, सरणम् अपसरणम् , अवस्कन्दः, परानीकभेदनं च तुरङ्गम. साध्यम् एतत् / / 8 // ) जिस राजा की सेवा में "अश्वबल" प्रधान होता है उसके ऊपर शत्रु संहार रूपी कन्दुक ( गेंद ) से क्रीड़ा करने वाली लक्ष्मी प्रसन्न होती है, उसके दूरवर्ती शत्रु भी हस्तगत हो जाते हैं / आपत्तियों में सब प्रकार के मनोरथों की सिद्धि घोड़ों के द्वारा ही होती है / सरण = आगे बढ़ना, अपसरण = पीछे हटना, अवस्कन्द = शत्रु पर छल से प्रहार और शत्रु-संन्य का भेदन यह सब घोड़ों की सहायता से ही सिद्ध होते हैं। जात्य घोड़े का लाभ-- जात्यारूढो विजिगीषुः शत्रोर्भवति, तत्तस्य गमनं नारातिर्ददाति / / 6 / / जात्य = अच्छी नस्ल वाले घोड़े पर चढ़ा हुआ राजा शत्र पर विजयी होता है और शत्रु उस पर आकमण नहीं कर पाता / संग्राम विजय के साधनसमाभूमिर्धनुर्वेदविदो रथारूढाः प्रहर्तारो यदा तदा किमसाध्यं नाम नृपाणाम् // 10 // ) __सङ्ग्राम में समतल भूमि मिले और धनुर्वेद-विशारद रथारूढ योद्धा गण हों तो राजाओं के लिये कुछ असाध्य नहीं होता। रथ की आवश्यकता. रथैरवमदितं परवलं सुखेन जीयते // 11 // रयो द्वारा कुचली गई शत्रुसेना सुखपूर्वक जीती जाती है। सेना के छह भेद(मौल-भृतक भृत्य श्रेणीमित्राटविकेषु पूर्व पूर्व बलं यतेत // 12 // सेना के छह भेद हैं-भौल = वंश-परम्परा से योद्धाओं की सेना, निम्न कर्मचारियों की सेना, सेवकों की सेना, तेली, नाई, शिल्पी, चर्मकार आदि अनेक जातियों की सम्मिलित सेना, मित्रों की सेना और अरण्यचारियों को सेना इनमें क्रमशः पूर्व-पूर्व बलके लिये राजा को यत्न करना चाहिए--इस विचार से जन्मजात लड़ाकू जाति वालों की सेना सर्वश्रेष्ठ है। जिनमें वंशपरम्परा से सैनिक होने आये हों उन लोगों के सन्नाह से निर्मित सेना सर्वश्रेष्ठ है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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