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________________ जनपदसमुद्देशः अपने स्वामी का उत्कर्ष करने के कारण शत्रुओं के हृदय विदीर्ण करने के कारण ( राज्य को ) दरत् कहते हैं। पहाड़ी इलाकों को दरत् कहा जा सकता है / दरत् शब्द पहाड़ का वाचक है और दरदाः कश्मीर के सीमान्त वर्ती प्रदेश को कहते हैं।) निगम का अर्थआत्मसमृद्ध्या स्वामिनं सर्वव्यसनेम्यो निगमयति निर्गमयतीति निगमः // 7 // __जो अपनी समृद्धि के कारण स्वामी को सब प्रकार की आपत्तियों से निर्गम करा दे निकाल दे-बचा दे वह ही निगम है।) जनपद के गुण(अन्योऽन्यरक्षकः, खन्याकरद्रव्यनागधनवान् , नातिवृद्धनातिहीनग्रामः, बहुसारविचित्रधान्यहिरण्यपण्योत्पत्तिः / अदेवमातृकः, पशुमनुष्यहितः, श्रेणिशूद्रकर्षकप्राय इति जनपदस्य गुणाः // 8 // जनपद के निम्नलिखित गुण हैं वह एक दूसरे का रक्षक हो अर्थात् जनपद से राजा की रक्षा होती हो और राजा से जनपद की रक्षा होती हो, वहाँ तरह-तरह के खनिज पदार्थ गन्धक, अभ्रक, नमक मादि और आकर से प्राप्त होने वाली धातुएं सोना, चांदी, तांबा आदि सम्पत्ति हो और उसके जंगलों में हाथी हों, उसके गांव न बहुत छोटे हों और न बहुत बड़े ही हों, जिसमें बहुमूल्य और विचित्र-विचित्र प्रकार के धान्य, सुवर्ण तथा विक्रय की बाजारू वस्तुएं सुलभ होती हों, जहां की खेती-बाड़ी केवल देवमातृक न हो अर्थात् नहर नदी आदि हों न कि मेघ ही पानी बरसावे तो खेती हो, पशुओं और मनुष्यों के लिये समान रूप से हितकर हो वहां श्रेणी अर्थात् बढ़ई, जुलाहे, नाई, घोबी, मकान बनाने वाले कारीगर और चर्मकार आदि हों, इन सब गुणों से जनपद का गौरव होता है। देश के लिये दोष(विषतृणोदकोषरपाषाणकण्टकगिरिगर्तगह्वरप्रायभूमि रिवर्षाजीवनो व्याललुब्धकम्लेच्छबहुलं, स्वल्पसस्योत्पत्तिः, तरुफलाधार इति देशदोषाः // 6 // घास फूस और जल का विषाक्त होना, अधिकांश भूभाग का ऊसर, पथरीला, कंटीला अर्थात् कांटेदार झाड़ियों से युक्त होना तथा छोटे-बड़े गडढों से युक्त होना, बहुत वर्षा होने पर जीवन का निर्भर होना अर्थात् केवल धान की खेती वाला होना सपं बहेलिया और म्लेच्छों की अधिकता, थोड़ा अन्न
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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