SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिवाक्यामृतम् गिराकर लोहे की कील प्राप्त करने में हैं / अर्थात् धूसखोर राजा का राज्य ही नष्ट हो जाता है।) राज्ञो लंचेन कार्यकरणं कस्य नाम कल्याणम् // 46 // . राजा का घूस लेकर काम करना किसी के लिये भी कल्याणकारक नहीं है।) (देवतापि यदि चौरेषु मिलति कुतः प्रजानां कुशलम् / / 47 // देवतारूप राजा भी यदि चोरों में मिल जाय तो प्रजा का कुशल. मङ्गल कहां से होगा ? अर्थात् रक्षक हो यदि भक्षक बन गया तो फिर कल्याण कहाँ ? (लंचेनार्थोपायं दर्शयन् देशं कोशं भिन्नं तन्त्रं च भक्षयति // 4 // राजा को घूस से अर्थलाभ प्रदर्शित करनेवाला अमात्य राजा के देश, कोश, मित्र और सैन्य वर्ग को खा जाता है अर्थात् विनष्ट कर देता है।) - राजा के द्वारा अन्याय और न्यायाचार(राज्ञोऽन्यायकरणं समुद्रस्य मर्यादालङ्घनम् , आदित्यस्य तमः पोष. णम् , मातुः स्वापत्यभक्षणमिति कलिकालविजम्भितानि / / 46 / / राजा का अन्याय करना समुद्र के मर्यादा लंघन के समान, सूर्य के द्वारा अन्धकार का पोषण होने के समान और माता का अपनो सन्तान के भक्षण के समान है और यह सब कलि युग का विलास है।) (राजा कालस्य कारणम // 50 // ) प्रजा के दुःखमय अथवा सुखमय समय व्यतीत करने का कारण राजा होता है। (न्यायतः परिपालके राजि प्रजानां कामदुधा भवन्ति सर्वा दिशः, काले च वर्षति मघवान् , सर्वाश्चेतयः प्रशाम्यन्ति / / 51 // जब राजा न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता है तब प्रजा के लिये समस्त दिशाएँ कामधेनु के समान हो जाती हैं-प्रजा की समस्त अभिलाषाएं. पूर्ण होती हैं इन्द्र समय से वर्षा करता है और राज्य की समस्त 'ईतियाँ' शान्त रहती हैं। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी दल आदि का आना, मूषकों का और चिड़ियों का उपद्रव, और राजाओं का चढ़ाई कर देना यह छह ईतियां है। राजपद की महत्ता(राजानमनुवर्तन्ते सर्वेऽपि लोकपालास्तेन मध्यममप्युत्तमं लोकपाल राजानमाहुः / / 52 / / )
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy