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________________ स्वामिसमुद्देशः (दुर्दर्शो हि राजा कार्याकार्यविपर्यासमासन्नैः कार्यतेऽतिसंधीयते च द्विषद्भिः // 28 // जो राजा प्रजा के कार्यों को स्वयम् नहीं देखता उस दुदर्श, राजा के भले और बुरे कामों को उसके आसन्न वर्ती अर्थात् पास रहने वाले लोग उलट-पुलट देते हैं और शत्रु भी ऐसे राजा को धोखा देते और ठगते हैं) ... राजा के सङ्कट से सेवकों की लाभ की प्रवृत्ति( वैद्येषु श्रीमतां व्याधिवर्धनादिव नियोगिषु भर्तुर्व्यसनवर्धनादपरो नास्ति जीवनोपायः / / 36 // ) जिस प्रकार धनी पुरुषों की व्याधियों के बढ़ने के अतिरिक्त दुसरा उपाय वैद्य की आजीविका का नहीं है उसी प्रकार सेवकों के लिये स्वामी के संकट में पड़ने के अतिरिक्त दूसरा जीविका का उपाय नहीं है अथवा स्वामी के द्यूत मद्यपान आदि के दुर्व्यसनी होने के अतिरिक्त दूसरा उपाय नहीं है / राजा यदि दुर्व्यसनों में लिप्त हो जाता है तो नौकर चाकर उसी छल से राजा के घन का अपहरण करते रहते हैं।) घूसखोरी के विषय में निर्देश और उपदेश कार्यार्थिनो, लंचो लुञ्चति // 40) कार्यार्थी पुरुष को घूस-भेट आदि लेने वाला अधिकारी लूटता है / : (निशाचराणां भूतबलि न कुर्यात् / / 41 / / राजा को चाहिए कि घूस-रिश्वत लेने वाले निशाचरों के लिये अपने भूत अर्थात् प्रजावर्ग को बलि न वनावे / अर्थात् राजा प्रजा को घुस-खोरों से बचावे / ) (लंचो हि सर्वपातकानामागमनद्वारम् / / 42 // घूस सब पापों के आने का द्वार रूप है।) . . ( मातुः स्तनमपि लुनंति लंचोपजीविनः // 43 // घस रिश्वत से जीविकार्जन करनेवाले व्यक्ति अपनी माता का भी स्तन काट लेते हैं। (लचेन कार्याभिरुद्धः स्वामी विक्रीयते // 44 // जिस स्वामी के यहां लंच अर्थात् घूस के कारण काम रुकता हो वह स्वामी घूसखोरों के हाथ बिक सा जाता है / घूस देने वाला उसके यहां न्यायअन्याय सभी प्रकार के कार्य कराता है।) (प्रासादविध्वंसनेन लोहकीलकलाभ इव लंचेन राज्ञोऽर्थलाभः // 4 // घस रिश्वत के द्वारा धन का लाभ राजा के लिये वैसा ही है जैसे महल
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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