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________________ आयुर्वेद और चिकित्सा : परि-१० 665 भाग पानी के लिए तथा छठा भाग वायु-संचरण के लिए खाली रखना चाहिए। एगो दवस्स भागो, अवट्ठितो भोयणस्स दो भागा। वखंति व हायंति व, दो दो भागा तु एक्केक्के॥ 1640 एत्थ तु ततियचतुत्था, दोण्णि वि अणवट्ठिता भवे भागा। पंचम छट्ठो पढमो, बितिओ य अवट्ठिता भागा॥ 1641 पानी का एक भाग तथा भोजन के दो भाग अवस्थित हैं, ये घटते-बढ़ते नहीं हैं। एक-एक में शेष दो-दो भाग बढ़ते-घटते हैं, जैसे-अतिशीतकाल में भोजन के दो भाग बढ़ जाते हैं तथा अतिउष्णकाल में पानी के दो भाग बढ़ जाते हैं। अतिउष्णकाल में भोजन के दो भाग कम हो जाते हैं तथा अतिशीतकाल में पानी के दो भाग कम हो जाते हैं। यहां तीसरा और चौथा-ये दोनों भाग अनवस्थित अर्थात् अस्थिर हैं। पांचवां, छठा, पहला और दूसस-ये अवस्थित भाग हैं। आतंको जरमादी, तम्मुप्पण्णे ण भुंजे...। सहसुप्पइया वाही, वारेज्जा अट्ठमादीहिं॥ 1665 ज्वर आदि आतंक उत्पन्न होने पर आहार नहीं करना चाहिए। सहसा उत्पन्न व्याधि का तेले आदि की तपस्या से निवारण करना चाहिए। लुक्खं तु णेहरहितं, जं खेत्तं वातपित्तलं वावि। सीतं बलियं भण्णति, अहव अणूवं भवे सीतं॥ 1822 रूक्ष का अर्थ है-स्नेहरहित, वह क्षेत्र, वात और पित्त को उत्पन्न करने वाला होता है। शीत क्षेत्र बलप्रद होता है अथवा सजल क्षेत्र शीतल होता है। अहवा वि रोगियस्सा, ओसह चाडूहि दिग्जते पुव्वं। पच्छा ताडेतुं पी, देहहितहाए दिज्जति से॥ 2382 रोगी को पहले मधुर वचनों से औषध दी जाती है, बाद में देहहित के लिए ताड़न आदि के द्वारा भी औषधि दी जाती है। मा अन्नेण दोसीणाइणा रोगो हवेज्जा। पारणगे आमलगसर्करादयो वा दीयन्ते। जीचूवि पृ. 34 बासी अन्न से रोग न हो इसलिए पारणे में आंवला और मिश्री दी जाती है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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