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________________ परिशिष्ट-११. देशी शब्द जिन शब्दों का कोई प्रकृति-प्रत्यय नहीं होता, जो व्युत्पत्तिजन्य नहीं होते तथा जो किसी परम्परा या प्रान्तीय भाषा से आए हों, वे देशज शब्द कहलाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने देशीनाम माला में देशी शब्दों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लिखा है जे लक्खणे ण सिद्धाऽपसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु। न य गहणलक्खणा सत्तिसंभवा ते इह निबद्धा॥ वैयाकरण त्रिविक्रम का कहना है कि आर्ष और देश्य शब्द विभिन्न भाषाओं के रूढ़ प्रयोग हैं अतः इनके लिए व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती। अनुयोगद्वार में वर्णित नैपातिक शब्दों को देशी शब्दों के अन्तर्गत माना जा सकता है। आगम एवं उनके व्याख्या ग्रन्थों में 18 प्रकार की देशी भाषाओं का उल्लेख मिलता है। वे 18 भाषाएं कौनसी थीं, इनका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। भिन्न-भिन्न प्रान्त के व्यक्ति दीक्षित होने के कारण आचार्य शिष्यों का कोश-ज्ञान एवं शब्द-ज्ञान समद्ध करने के लिए विभिन्न प्रान्तीय शब्दों का प्रयोग करते थे। नियुक्ति साहित्य में अनेक प्रान्तीय देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। संख्यावाची शब्द जैसे-पणपण्ण, पण्णास, बायालीस आदि को भी कुछ आचार्य देशी मानते हैं। इस संग्रह में हमने संख्यावाची शब्दों का संग्रह नहीं किया है। अनुकरणवाची शब्दों एवं आदेश प्राप्त धातुओं के बारे में विद्वानों में मतभेद है पर हमने इनको देशी शब्दों के रूप में स्वीकृत किया है। अनेक शब्द जो संस्कृत कोश में भी मिलते हैं लेकिन उनको यदि देशीनाम माला में देशी माना है तो उनका इस संकलन में संग्रह किया है। जैन विश्वभारती, लाडनूं से प्रकाशित 'देशीशब्दकोष' में दस हजार से अधिक देशी शब्दों का चयन किया गया है। अइर–अतिरोहित। गा. 1553 अम्मया-मां गा.७९३ अंधेल्लय-अंधा। गा. 1569 | अम्मो-मां। गा.१२२६ अंबिलि-इमली गा. 578 | आड-जबरदस्ती, बलपूर्वक। गा.८५८ अचियत्त-अप्रीति। गा. 1566 | आसीआवण-अपहरण करना। गा.२३३८ अड्डाइय-ढ़ाई। __गा. 81 आसूय-मनौती से प्राप्त।। गा.१३१५ अणिदा-ज्ञान शून्य। गा. 1115 इट्टगा-सेवई। गा.१३९६ अप्पाहणि-संदेश। गा.१३२७ इट्टाल-ईंट। गा.१४५५ 1. देशी 1/3 / 2. राजटी पृ. 341 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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