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________________ कथाएं : परि-२ 619 धर्म-प्रवचन करके सो गए। महाराज उदायी भी थकने के कारण वहीं भूमि पर सो गए। वह मुनि जागता रहा। रात्रि के एकान्त में अवसर का लाभ उठाते हुए उसने कैंची राजा के गले पर फेंक दी। राजा का गला छिन्न हो गया और वहां से रक्त बहने लगा। ___ वह दुष्ट श्रमण वहां से बाहर चला गया। पहरेदारों ने भी उसे नहीं रोका। रक्त की धारा बहती हुई आचार्य के संस्तारक के पास पहुंच गई। आचार्य ने उठकर सारा दृश्य देखा, वे अवाक् रह गए। शिष्य को न देखकर उन्होंने जान लिया कि यह सारा कार्य उस कपटी श्रमण का ही होना चाहिए इसीलिए वह यहां से भाग गया है। आचार्य ने चिन्तन किया- राजा की इस मृत्यु से जैन शासन कलंकित होगा और लोग कहेंगे कि जैन आचार्य ने अपने श्रावक राजा को मार दिया।' प्रवचन की अवहेलना न हो इसलिए अच्छा है मैं स्वयं का भी घात कर लूं। इससे लोग यह सोचेंगे कि राजा और आचार्य को किसी ने मार डाला। इससे शासन का अपयश नहीं होगा। आचार्य ने अंतिम अनशन स्वीकार करके उसी कैंची से अपना गला छेद डाला। प्रातः सारे नगर में यह बात फैल गई कि उस शिष्य ने राजा और आचार्य की हत्या कर दी। सैनिक उसकी तलाश में गए लेकिन वह नहीं मिला। वह उदायीमारक श्रमण उज्जयिनी नगरी पहुंचा और वहां के राजा को सारा वृत्तान्त कहा। राजा ने कहा-'अरे दुष्ट!' इतने दिन तक श्रामण्य का पालन करने पर भी तेरी कपटता समाप्त नहीं हुई। तेरे जैसे दुष्ट को अपने पास रखने से क्या लाभ? राजा ने उसकी भर्त्सना की और देश निकाला दे दिया।' 64. आचार्य स्कन्दक और पालकर (जीभा 2499.2500. कथा के विस्तार हेतु देखें कथा सं.७) 65. स्त्यानर्द्धि निद्रा : पुद्गल दृष्टान्त - एक कौटुम्बिक आहार के साथ पकाए हुए या तले हुए मांस को खाता था। एक बार तथारूप स्थविर साधु के पास धर्म सुनकर वह प्रव्रजित होकर ग्रामानुग्राम विहार करने लगा। एक गांव में उसने भैंसे को काटते हुए देखा। उसे देखकर उसकी मांस खाने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हो गई। उस तीव्र अभिलाषा के साथ ही उसने भिक्षा की। तीव्र अभिलाषा के साथ ही आहार किया तथा मांस खाने की तीव्र अभिलाषा के साथ ही वह विचारभूमि गया। उसी अभिलाषा से उसने अंतिम सूत्र-पौरुषी और प्रतिक्रमण किया। अंत में उसी अभिलाषा के साथ वह सो गया। सोते ही उसके स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हो गया। वह नींद में उठा और महिषमंडल के बीच में पहंच गया। एक महिष को मारकर उसका मांस खाकर शेष मांस को उपाश्रय के ऊपर डालकर वह पुनः सो गया। प्रात:काल उसने गुरु के समक्ष आलोचना करते हुए कहा कि मैंने ऐसा स्वप्न देखा। साधुओं ने दिशाओं का अवलोकन करते हुए उपाश्रय के ऊपर और बाहर मांस देखा। इससे उन्होंने जान लिया कि यह स्त्यानर्द्धि निद्रा का प्रभाव है। गुरु ने उसे लिंग पारांचित प्रायश्चित्त दे दिया। 66. स्त्यानर्द्धि निद्रा : मोदक दृष्टान्त एक साधु ने भिक्षा करते हुए मोदक का भोजन देखा। उसने दीर्घकाल तक मोदक हेतु भ्रमण .1. जीभा 2498, परि. पर्व सर्ग 6 पृ. 64, 65 / 2. जीभा 2529, निभा 136 चू पृ.५५, बृभा 5018 टी पृ. 1340 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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