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________________ कथाएं : परि-२ 603 ने बताया कि यह विष्णुमित्र का घर है। क्षुल्लक ने पुनः पूछा कि वह विष्णुमित्र इस समय कहां है? व्यक्ति ने उत्तर दिया-'वह अभी परिषद् के बीच है।' __क्षुल्लक ने परिषद् के बीच में जाकर पूछा 'तुम लोगों के बीच में विष्णुमित्र कौन है?' लोगों ने कहा—'विष्णुमित्र से आपको क्या प्रयोजन है।' साधु ने कहा—'मैं उससे कुछ याचना करूंगा।' विनोद करते हुए उन्होंने कहा—'यह बहुत कृपण है अतः आपको कुछ नहीं देगा। आपको जो मांगना है, वह हमसे मांगो।' तब विष्णुमित्र ने सोचा कि इतने लोगों के बीच मेरी अवहेलना न हो अतः उनके सामने बोला_'मैं ही विष्णुमित्र हूं, मुझसे कुछ भी मांगो।' ___तब क्षुल्लक बोला—'यदि तुम छह महिलाप्रधान व्यक्तियों में से नहीं हो तो मैं याचना करूंगा।' तब परिषद् के लोगों ने पूछा-'वे छह महिलाप्रधान पुरुष कौन से हैं?' क्षुल्लक ने कहा कि उन छह पुरुषों के नाम इस प्रकार हैं-१. श्वेताङ्गुलि 2. बकोड्डायक 3. किंकर 4. स्नायक 5. गृध्रइवरिडी 6. हदज्ञ / ' इस प्रकार क्षुल्लक द्वारा छहों व्यक्तियों का वर्णन सुनकर परिषद् के लोगों ने अट्टहास करते हुए कहा'इसमें छहों पुरुषों के गुण हैं इसलिए इस महिलाप्रधान पुरुष से मांग मत करो।' विष्णुमित्र बोला-'मैं इन छह पुरुषों के समान नहीं हूं, तुम मांग करो।' उसके आग्रह पर क्षुल्लक बोला-'मुझे घृत और गुड़ संयुक्त पात्र भरकर सेवई दो।' विष्णुमित्र बोला—'मैं तुमको यथेच्छ सेवई दूंगा।' तब वह विष्णुमित्र क्षुल्लक को लेकर अपने घर की ओर गया। घर के द्वार पर पहुंचने पर क्षुल्लक ने कहा 'मैं पहले भी तुम्हारे घर आया था लेकिन तुम्हारी भार्या ने प्रतिज्ञा की थी कि मैं तुमको कुछ भी नहीं दूंगी इसलिए तुमको जो उचित लगे, वह करो।' क्षुल्लक के ऐसा कहने पर विष्णुमित्र बोला—'यदि ऐसी बात है तो तुम कुछ समय के लिए घर के बाहर रुको, मैं स्वयं तुमको बुला लूंगा।' विष्णुमित्र' घर में प्रविष्ट हुआ। उसने अपनी पत्नी से पूछा- क्या सेवई पका ली?' उनको घी और गुड़ से युक्त कर दिया?' पत्नी ने कहा 'मैंने सारा कार्य पूर्ण कर दिया।' विष्णुमित्र ने गुड़ को देखकर कहा—'यह गुड़ थोड़ा है, इतना गुड़ पर्याप्त नहीं होगा अतः माले पर चढ़कर अधिक गुड़ लेकर आओ, जिससे मैं ब्राह्मणों को भोजन करवाऊंगा।' पति के वचन सुनकर वह निःश्रेणि के माध्यम से माले पर चढ़ी। चढ़ते ही विष्णुमित्र ने निःश्रेणि वहां से हटा दी। विष्णुमित्र ने क्षुल्लक को बुलाकर पात्र भरकर सेवई का दान दिया। उसके बाद उसने घी और गुड़ आदि देना प्रारंभ किया। इसी बीच गुड़ लेकर सुलोचना माले से उतरने के लिए तत्पर हुई लेकिन वहां निःश्रेणि को नहीं देखा। उसने आश्चर्यचकित होकर क्षुल्लक को घृत, गुड़ से युक्त सेवई देते हुए देखकर सोचा कि मैं इस क्षुल्लक से पराजित हो गई अतः उसने ऊपर खड़े-खड़े ही चिल्लाते हुए बार-बार कहा—'इस क्षुल्लक को दान मत दो।' क्षुल्लक ने भी उसकी ओर देखकर अपनी नाक पर अंगुलि रखकर यह प्रदर्शित किया कि मैंने तुम्हारे नासापुट में प्रस्रवण कर दिया है। 1. इन छह कथाओं के विस्तार हेतु देखें पिनि कथा सं. 31-36 / 2. निचू भा. 3 (पृ. 420) में विष्णुमित्र के स्थान पर इंद्रदत्त नाम का उल्लेख मिलता है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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