________________ 602 जीतकल्प सभाष्य. / 43. क्रोधपिण्ड :क्षपक दृष्टान्त हस्तकल्प नगर में किसी ब्राह्मण के घर में मृतकभोज था। उस भोज में एक मासखमण की तपस्या वाला साधु पारणे के लिए भिक्षार्थ पहुंचा। उसने ब्राह्मणों को घेवर का दान देते हुए देखा। उस तपस्वी साधु को द्वारपाल ने रोक दिया। साधु कुपित होकर बोला—'आज नहीं दोगे तो कोई बात नहीं, अगले महीने तुम्हें मुझको देना होगा।' ऐसा कहते हुए वह घर से निकल गया। दैवयोग से उस घर का अन्य कोई व्यक्ति कुछ दिनों के बाद दिवंगत हो गया। उसके मृतकभोज वाले दिन वही साधु मासखमण के पारणे हेतु वहां पहुंचा। उस दिन भी द्वारपाल ने उसको रोक दिया। वह मुनि कुपित होकर पुनः बोला—'आज नहीं तो फिर कभी देना होगा।' मुनि की यह बात सुनकर स्थविर द्वारपाल ने चिन्तन किया कि पहले भी इस साधु ने दो बार इसी प्रकार श्राप दिया था। घर के दो व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो . गए, इस बार तीसरा अवसर है। अब घर का कोई व्यक्ति न मरे अतः उसने गृहनायक को सारी बात' बताई / गृहनायक ने आदरपूर्वक साधु से क्षमायाचना की तथा घेवर आदि वस्तुओं की भिक्षा दी। (यह क्रोधपिण्ड है)। 44. मानपिण्ड : सेवई-दृष्टान्त __कौशल जनपद के गिरिपुष्पित नगर में सिंह नामक आचार्य अपने शिष्य-परिवार के साथ आए। एक बार वहां सेवई बनाने का उत्सव आया। उस दिन सूत्र पौरुषी के बाद सब तरुण साधु एकत्रित हुए। उनका आपस में वार्तालाप होने लगा। उनमें से एक साधु बोला—'इतने साधुओं में कौन ऐसा है, जो प्रात:काल ही सेवई लेकर आएगा।' गुणचन्द्र नामक क्षुल्लक बोला—'मैं लेकर आऊंगा।' साधुओं ने कहा—'यदि सेवई सब साधुओं के लिए पर्याप्त नहीं होगी अथवा घृत या गुड़ से रहित होगी तो उससे हमको कोई प्रयोजन नहीं है, तुम्हें घृत और गुड़ से युक्त पर्याप्त सेवई लानी होगी।' क्षुल्लक बोला—'जैसी तुम्हारी इच्छा होगी, वैसी ही सेवई मैं लेकर आऊंगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके वह नांदीपात्र को लेकर भिक्षार्थ गया। उसने किसी कौटुम्बिक के घर में प्रवेश किया। साधु ने वहां पर्याप्त सेवई देखी। वह प्रचुर घी और गुड़ से संयुक्त थी। साधु ने अनेक वचोविन्यास से सुलोचना नामक गृहिणी से सेवई की याचना की। गृहस्वामिनी ने साधु को भिक्षा देने के लिए सर्वथा प्रतिषेध करते हुए कहा—'मैं तुमको कुछ भी नहीं दूंगी।' तब क्रोधपूर्वक क्षुल्लक मुनि ने कहा-'मैं निश्चित रूप से घी और गुड़ से युक्त इस सेवई को ग्रहण करूंगा।' क्षुल्लक के वचनों को सुनकर सुलोचना भी क्रोधावेश में आकर बोली-'यदि तुम इस सेवई को किसी भी प्रकार प्राप्त करोगे तो मैं समझूगी कि तुमने मेरे नासापुट में प्रस्रवण किया है।' तब क्षुल्लक ने सोचा 'मुझे अवश्य ही इस घर से सेवई प्राप्त करना है।' दृढ़ निश्चय करके वह घर से निकला और पार्श्व के किसी व्यक्ति से पूछा-'यह किसका घर है?' व्यक्ति 1. जीभा 1395, पिनि 218/1, मटी प. 134, निभा 4442, चू पृ. 418 /