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________________ कथाएं : परि-२ 601 बात सुनकर क्रोधित होकर देवकी बोली—'जानकारी के अभाव में मैंने अपने पिता मुनि के साथ अपनी पुत्री को संदेश भेजा था।' सारे लोक में मुनि धनदत्त को धिक्कार मिलने लगी। प्रवचन की भी अवहेलना होने लगी। 41. निमित्त दोष : ग्रामभोजक-दृष्टान्त एक गांव में अवसन्न नैमित्तिक साधु रहता था। उस गांव का नायक अपनी पत्नी को छोड़कर दिग्यात्रा पर गया हुआ था। उसकी पत्नी को उस नैमित्तिक ने अपने निमित्त ज्ञान से आकृष्ट कर लिया। दूरस्थ ग्रामनायक ने सोचा-'मैं प्रच्छन्न रूप से अकेला जाकर अपनी पत्नी की चेष्टाएं देखूगा कि वह दुःशीला है अथवा सुशीला?' उस नैमित्तिक साधु से अपने पति के आगमन की बात जानकर उसने अपने परिजनों को सामने भेजा। ग्रामनायक ने परिजनों से पूछा-'तुम लोगों को मेरे आगमन की बात कैसे ज्ञात हुई?' उन्होंने कहा—'तुम्हारी पत्नी ने यह बात बताई है।' उसने मन में चिन्तन किया कि मेरी पत्नी ने मेरे आगमन की बात कैसे जानी? - साधु उस समय ग्रामभोजक के घर आ गया। उसने विश्वासपूर्वक पति के साथ हुए वार्तालाप, चेष्टा, स्वप्न तथा शरीर के मष, तिलक आदि के बारे में बताया। इसी बीच ग्रामभोजक अपने घर आ गया। उसने पति का यथोचित सत्कार किया। उसने पूछा 'तुमने मेरे आगमन की बात कैसे जानी?' वह बोली"साधु के निमित्त-ज्ञान से मुझे जानकारी मिली।' भोजक ने कहा—'क्या उसकी और भी कोई विश्वासपूर्ण बात है?' तब उसने बताया कि आपके साथ जो भी वार्तालाप, चेष्टाएं आदि की हैं, जो मैंने स्वप्न आदि देखें हैं, मेरे गुह्य प्रदेश में जो तिलक है, वह भी इस नैमित्तिक साधु ने यथार्थ बता दिए हैं। भोजक ने ईर्ष्या और क्रोधवश उस साधु से पूछा-'इस घोड़ी के गर्भ में क्या है?' साधु ने बताया 'पंचपुंड्र वाला घोड़ी का बच्चा।' तब उसने सोचा—' यदि यह बात सत्य होगी तो मेरी भार्या को बताए गए मष, तिलक आदि का कर्थन भी सत्य होगा। अन्यथा अवश्य ही यह विरुद्ध कर्म करने वाला व्यभिचारी है अतः मारने योग्य है।' इस प्रकार चिन्तन करके उसने घोड़ी का पेट चीरा, उसमें से परिस्पंदन करता हुआ पंचपुंड्र किशोर निकला। उसको देखकर उसका क्रोध शांत हो गया। वह साधु से बोला—'यदि यह बात सत्य नहीं होती तो तुम भी इस दुनिया में नहीं रहते।'२ ४२.चिकित्सा दोष : सिंह-दृष्टान्त एक अटवी में एक व्याघ्र अंधा हो गया। अंधेपन के कारण उसे भक्ष्य मिलना दुर्लभ हो गया। एक वैद्य ने उसका अंधापन मिटा दिया। स्वस्थ होते ही व्याघ्र ने सबसे पहले उसी वैद्य का घात किया, फिर वह जंगल में अन्य पशुओं को भी मारने लगा। १.जीभा 1335-39, पिनि 202,203 मटी प.१२७, निभा 4401,4402, चू पृ. 410 / 2. जीभा 1342-47, पिनि 205, पिभा 33, 34 मटी प. 128, निभा 2694-96 चू. पृ. 20 / 3. जीभा 1392, पिनि 215 मटी प. 133 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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