________________ 598 जीतकल्प सभाष्य 37. आज्ञा की आराधना-विराधना : उद्यान द्वय दृष्टान्त चन्द्रानना नामक नगरी में चन्द्रावतंसक राजा राज्य करता था। त्रिलोकरेखा आदि उसकी अनेक रानियां थीं। राजा के पास दो उद्यान थे—एक पूर्व दिशा में, जिसका नाम सूर्योदय था। दूसरा पश्चिम दिशा में, जिसका नाम चन्द्रोदय था। एक दिन बसन्त मास में राजा ने अंत:पुर के साथ क्रीड़ा करने की घोषणा करवाते हुए पटह फिरवाया—'प्रात:काल राजा सूर्योदय नामक उद्यान में अपने अंत:पुर के साथ यथेच्छ . विहरण करेंगे अतः वहां कोई नागरिक न जाए।' सारे तृणहारक और काष्ठहारक भी चन्द्रोदय उद्यान में चले जाएं। पटह फिरवाने के पश्चात् राजा ने सूर्योदय उद्यान की रक्षा हेतु सैनिकों की नियुक्ति कर दी और आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति उस उद्यान में प्रवेश न करे। रात्रि में राजा ने चिन्तन किया कि सूर्योदय उद्यान में जाते हुए प्रात:काल सूर्य सामने रहेगा और लौटते हुए मध्याह्न में भी सामने रहेगा। सम्मुख सूर्य की किरणें कष्टदायक होती हैं अत: मैं चन्द्रोदय उद्यान जाऊंगा। ऐसा सोचकर राजा ने वैसा ही किया। इधर पटह को सुनने के बाद भी कुछ दुश्चरित्र व्यक्तियों ने सोचा कि हमने कभी भी राजा के अंत:पुर को साक्षात् नहीं देखा है। प्रातः राजा सूर्योदय उद्यान में अंत:पुर के साथ आएगा और यथेच्छ विहरण करेगा। हम लोग पत्र बहुल वृक्ष की शाखा में इस प्रकार छिप जाएंगे कि कोई भी हमें देख न पाए। इस प्रकार हम राजा के अंत:पुर को देख पाएंगे। उन्होंने वैसा ही किया। उद्यान रक्षकों ने वृक्ष की शाखा के बीच छिपे हुए उन लोगों को देख लिया। उनको पकड़कर डंडे से पीटा और रज्जु आदि से बांध दिया। जो दूसरे तृणहारक थे, वे सब चन्द्रोदय उद्यान में गए। उन्होंने यथेच्छ क्रीड़ा करते हुए राजा के अंत:पुर की रानियों को देखा। उनको भी राजपुरुषों ने पकड़ लिया। उद्यान से बाहर नगर के अभिमुख जाते हुए राजा के सन्मुख उद्यान-पालकों ने दोनों प्रकार के व्यक्तियों को उपस्थित किया और सारा वृत्तान्त बताया। जिन्होंने आज्ञा का भंग किया, उनकी अंत:पुर दर्शन की इच्छा पूरी नहीं हुई फिर भी उनको समाप्त कर दिया गया तथा जो चन्द्रोदय उद्यान में गए थे, उन्होंने आज्ञा का पालन किया था अतः अंत:पुर देखने पर भी उनको मुक्त कर दिया गया। 38. द्रव्यपूति : गोबर-दृष्टान्त समिल्ल नामक नगर के बाहर उद्यान में माणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। एक दिन उस नगर में शीतलक नामक अशिव उत्पन्न हो गया। तब कुछ लोगों ने सोचा कि यदि इस अशिव से हम बच जाएंगे तो एक वर्ष तक अष्टमी आदि पर्व-तिथियों में उद्यापनिका करेंगे। नगर के सभी लोग उस अशिव से निस्तीर्ण हो गए। उन लोगों के मन में निश्चय हो गया कि यह सब यक्ष का चमत्कार है। तब देवशर्मा नामक व्यक्ति को वैतनिक रूप से पुजारी के रूप में नियुक्त करते हुए लोगों ने कहा—'तुमको एक वर्ष तक अष्टमी आदि दिनों में प्रात:काल यक्ष-सभा को गोबर से लीपना है। उस स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर हम १.जीभा 1191, 1192, पिनि 91-91/4 मटी प.७६ /