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________________ 596 जीतकल्प सभाष्य / सोचने लगा। इतने में वह शीघ्रता से यक्ष की प्रतिमा के नीचे से निकल गयी। लोगों में उसकी जय-जयकार होने लगी। सभी स्थविर को धिक्कारने लगे। यक्ष ने सोचा 'इसने मुझे भी ठग लिया।' सत्यवादी होने पर भी वृद्ध झूठा साबित हो गया। इस चिन्ता से स्थविर की निद्रा उड़ गई। उसको अंत:पुर की रानियों के द्वारपाल के रूप में नियुक्त कर दिया गया। रात्रि का प्रथम प्रहर बीतने पर सभी रानियां निद्राधीन हो गईं लेकिन एक रानी को नींद नहीं आ रही थी। स्थविर ने सोचा अवश्य ही कोई कारण होना चाहिए अतः उसने कपट-निद्रा लेनी प्रारंभ कर दी। रानी हाथी की सूंड के सहारे महावत के पास चली गई। देरी से आने के कारण महावत ने रोषपर्वक लोहे की सांकल से उसे ताडित किया। रानी ने कहा—'गुस्सा मत करो। अंत:पुर में एक ऐसा वृद्ध नियुक्त हुआ है, जिसे बहुत देरी से नींद आई।' प्रात:काल हाथी पर चढ़कर वह पुनः अंत:पुर में चली गई। वृद्ध ने सोचा-'जब उभयकुल. विशुद्ध राजा .. की पत्नियां भी ऐसा विरुद्ध आचरण कर सकती हैं तो फिर मेरी पुत्रवधू ने जो किया, उसमें कोई आश्चर्य नहीं है।' ऐसा सोचकर वह चिंतामुक्त होकर गहरी नींद में चला गया। सूर्योदय होने पर भी वह नहीं उठा। राजा तक उसकी शिकायत पहुंची। राजा ने उसको बुलाया लेकिन वद्ध बोला कि मझे मत उठाओ। सातवें दिन उसकी नींद टूटी तब राजा ने पूछा—'क्या बात है?' तब उसने सारी बात राजा को बताई। राजा ने पूछा—'क्या तुम उस रानी को जानते हो?' वृद्ध ने कहा—'मैं उस रानी को नहीं पहचानता हूं।'. राजा ने मिट्टी का हाथी बनवाया। सब रानियों ने उस हाथी को लांघ दिया। एक रानी बोली- : 'मिट्टी के हाथी से मुझे भय लगता है।' शंका होने पर राजा ने उत्पल-नाल से उसको ताड़ित किया। वह / मूर्छित होकर धरती पर गिर गई। उसकी पीठ पर लोहे की सांकल के प्रहार दिखाई दिए। राजा ने कहामदोन्मत्त हाथी पर चढ़ते हुए तुम्हें भय नहीं लगा, श्रृंखला से प्रहार करने पर भी तुम मूर्च्छित नहीं हुई लेकिन मेरे द्वारा उत्पल-नाल का प्रहार करने पर तुम मूछित हो गई। राजा ने जान लिया कि यह स्वैरिणी है। राजा ने उसी समय आदेश दिया कि रानी, महावत और हाथी ये तीनों वध करने योग्य हैं। पर्वत पर ले जाकर इनका वध करना है। छिन्न टंक पर ले जाकर महावत ने हाथी का एक पैर ऊपर उठाया। लोगों ने राजा को निवेदन किया कि बेचारा हाथी तिर्यञ्च है, यह क्या जानता है अतः इसको मत मारो लेकिन राजा ने उनकी बात स्वीकृत नहीं की। आगे के दो पैरों को भी उसने कष्टपूर्वक उठाया। प्रार्थना करने पर भी राजा ने आदेश वापस नहीं लिया। तीन पैर ऊपर उठाने पर लोग चर्चा करने लगे कि राजा निर्दोष हाथी का वध करवा रहा है। उस समय कोप शान्त होने पर राजा ने कहा—'क्या तुम हाथी के पैरों को वापस धरती पर रखवाने में समर्थ हो?' महावत ने कहा—'यदि आप हम लोगों को अभयदान दो तो मैं हाथी को मूल स्थिति में ला सकता हूं।' राजा ने उनको अभयदान दे दिया। महावत ने अंकुश के माध्यम से हाथी को मूल स्थिति में लौटा दिया। राजा ने रानी के साथ महावत को देश-निकाला दे दिया। इस कथा का उपसंहार करते हुए पिण्डनियुक्ति के टीकाकार मलयगिरि कहते हैं कि छिन्न 1. जीभा 1181, पिनि 82/2 मटी प. 68, धर्मोपदेशमाला पृ. 46-52 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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