________________ कथाएं : परि-२ 595 रुकते हैं।' साधुओं के जाने पर श्रावक ने मीठे पानी का कूप खुदवाया। उसको खुदवाकर लोकप्रवृत्ति जनित पाप के भय से कूप का मुख फलक से तब तक ढ़क दिया, जब तक कोई अन्य साधु वहां न आए। साधुओं के आने पर उसने सोचा कि केवल मेरे घर मीठा पानी रहेगा तो साधुओं को आधाकर्म की आशंका हो जाएगी अतः उसने सब घरों में मीठा पानी भेज दिया। पूर्वोक्त कथानक के अनुसार साधुओं ने बालकों के मुख से संलाप सुनकर जान लिया कि यह पानी आधाकर्मिक है। उन्होंने उस गांव को छोड़ दिया। 35. नूपुरपंडिता जंबूद्वीप के भारतवर्ष में बसन्तपुर नामक नगर था। वहां के राजा का नाम जितशत्रु और रानी का नाम धारिणी था। एक बार स्नान हेतु कुछ महिलाएं तालाब के किनारे आईं। वहां एक महिला के साथ सुदर्शन नामक पुरुष का आपस में अनुराग हो गया। दूती के माध्यम से उनका आपस में संबंध स्थापित हो गया। कृष्णा पंचमी को संकेतित स्थान अशोक वनिका में उन दोनों का समागम हुआ। वे वहीं निद्राधीन हो गए। चतुर्थ याम में श्वसुर ने उन दोनों को साथ सोते हुए देख लिया। उसने धीरे से पुत्रवधू के पैरों से नूपुर निकाल लिया। श्वसुर के इस वृत्तान्त को जानकर उसने उस जार पुरुष को वहां से बाहर भेज दिया और स्वयं पति के पास जाकर सो गई। थोड़ी देर बाद उसने पति को जगाकर कहा—'यहां गर्मी है अतः अशोक-वनिका में चलते हैं।' वे दोनों वहां चले गए। थोड़ी देर में पति को उठाकर उसने कहा—'क्या यह हमारे कुल के अनुरूप आचार है कि पति के साथ रति-सुख का अनुभव करती हुई पुत्रवधू के पैरों से श्वसुर नूपुर निकालकर ले जाएं।' पति ने पूछा- क्या यह सत्य है?' प्रातःकाल पुत्र ने अपने पिता से इस संदर्भ में पूछा। पिता ने कहा-'तुम्हारी पत्नी स्वैरिणी है, वह रात्रि में किसी अन्य पुरुष के साथ सोई थी अतः मैंने उसके पैरों से नूपुर निकाल लिया।' पुत्र ने कहा'अशोक-वनिका में मैं ही था।' वृद्ध पिता बोल—'मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूं कि रात्रि में उसके साथ कोई अन्य पुरुष था।' इसी बीच पुत्रवधू ने आकर उच्च स्वर में कहा-'जब तक मेरी कलंकशुद्धि नहीं होगी, तब तक मैं भक्त-पान ग्रहण नहीं करूंगी।' - कोलाहल सुनकर लोग एकत्रित हो गए। उसने सबके समक्ष कहा—'मैं दिव्य-घट लेकर स्वयं को शुद्ध प्रमाणित करूंगी।' वृद्ध नागरिकों ने कहा—'कुत्रिकापण में यक्ष के समक्ष परीक्षा दो।' वह स्नान आदि से शुद्ध होकर बलिकर्म करके नागरिकों के साथ वहां पहुंची। वहां राजा आदि भी उपस्थित थे। इसी बीच वह सुदर्शन नामक जार पुरुष भी पागल का रूप बनाकर फटे-पुराने कपड़े पहनकर वहां आ गया। वह लोगों का आलिंगन करता हुआ उसके पास आया और पुत्रवधू का बलात् आलिंगन करने लगा। लोकपालों को संबोधित करके उसने यक्ष से कहा-'मेरे माता-पिता ने जिस व्यक्ति के साथ मेरा विवाह किया, उसको तथा इस ग्रहाविष्ट पुरुष को छोड़कर यदि मैंने मन से भी किसी अन्य पुरुष का चिन्तन नहीं किया है तो मैं यक्ष के नीचे से कुशलतापूर्वक निकल जाऊंगी।' उसकी बात सुनकर यक्ष किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कुछ 1. जीभा 1151, 1152, पिनि 77 मटी प.६५।