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________________ 594 जीतकल्प सभाष्य पूछा—'क्या आपको यह क्षेत्र पसंद आया? क्या आचार्य इस क्षेत्र में पदार्पण कर सकते हैं?' उनमें से ज्येष्ठ साधु ने उत्तर दिया—'वर्तमानयोग से।' उनके उत्तर से जिनदत्त को ज्ञात हुआ कि इनको क्षेत्र पसंद नहीं आया है। जिनदत्त ने सोचा कि अन्य साधु भी यहां आते हैं लेकिन यहां कोई रुकता नहीं है, इसका कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। मूल कारण को जानने के लिए उसने किसी अन्य साधु को पूछा। उसने सरलतापूर्वक सारी बात बताते हुए कहा—'इस क्षेत्र में सारे गुण हैं, यह क्षेत्र गच्छ के योग्य है लेकिन यहां आचार्य के योग्य शाल्योदन नहीं हैं।' इस बात को जानकर जिनदत्त श्रावक दूसरे गांव से शालि-बीज लेकर आया और अपने गांव में उनका वपन कर दिया। वहां प्रभूत शालि की उत्पत्ति हुई। ___ एक बार विहार करते हुए उन साधुओं के साथ कुछ अन्य साधु भी उस गांव में आए। श्रावक जिनदत्त ने सोचा—'मुझे इन साधुओं को शाल्योदन की भिक्षा देनी चाहिए, जिससे आचार्य के योग्य क्षेत्र समझकर ये साधु आचार्य को भी इस क्षेत्र में लेकर आएं। यदि मैं केवल अपने घर से शाल्योदन दूंगा और अन्य घरों में कोद्रव आदि धान्य की प्राप्ति होगी तो साधुओं को आधाकर्म की शंका हो जाएगी।' उसने * सभी स्वजनों के घर शाल्योदन भेजकर कहा—'तुम स्वयं शाल्योदन पकाकर खाओ और साधुओं को भी दान दो।' यह बात सब बालकों को भी ज्ञात हो गई। साधु जब भिक्षार्थ गए तो उन्होंने बालकों के मुख से अनेक बातें सनीं। कोई बालक बोला 'ये वे साध हैं. जिनके लिए घर में शाल्योदन बना है।' अन्य बालक बोला—'साधु संबंधी शाल्योदन को मेरी मां ने मुझे दिया। कहीं-कहीं कोई दानदात्री श्राविका बोली-'यह . परकीय शाल्योदन दिया, अब मेरे घर की भिक्षा भी लो।' कोई गृहस्वामी अपनी पत्नी से बोला—'परकीय शाल्योदन भिक्षा में दे दिया, अब अपना बनाया हुआ आहार भी भिक्षा में दो।' कोई अनभिज्ञ बालक अपनी मां से कहने लगा—'मुझे साधु से संबंधित शाल्योदन दो।' दरिद्र व्यक्ति सहर्ष बोला-'हमारे यहां भक्त का अभाव होने पर भी शालि भक्त बना है। यह अवसर पर अवसर के अनुकूल बात हुई है।' कहीं कोई बालक अपनी मां से बोला—'मां! शालि तण्डुलोदक साधु को दो', दूसरा बालक बोला...' साधु को शालिकाजिक दो।' सबके मुख से अनेक प्रकार की बातें सुनकर साधुओं ने लोगों से पूछा—'यह क्या बात है?' पूछने पर उन्होंने ऋजुता से सारी बात बता दी कि यह शाल्योदन साधुओं के लिए बनाया गया है। सारा शाल्योदन आधाकर्मिक है' यह जानकर साधुओं ने उन सब घरों का परिहार कर दिया और भिक्षार्थ अन्य घरों में चले गए। कुछ साधु जिनकी भिक्षा वहां पूरी नहीं हुई, वे प्रत्यासन्न गांव में भिक्षार्थ चले गए। 34. आधाकर्म : पानक-दृष्टान्त किसी गांव में सारे कूप खारे पानी के थे। उस लवण प्रधान क्षेत्र में क्षेत्र-प्रत्युपेक्षण के लिए कुछ साधु आए। उन्होंने पूरे क्षेत्र की प्रतिलेखना की। तत्रस्थ निवासी श्रावकों के द्वारा सादर अनुरोध करने पर भी साधु वहां नहीं रुके। श्रावकों ने उनमें से किसी सरल साधु को वहां न रुकने का कारण पूछा। उसने सरलता से यथार्थ बात बताते हुए कहा-'इस क्षेत्र में और सब गुण हैं केवल पानी खारा है इसलिए साधु यहां नहीं 1. जीभा 1148-50, पिनि 76-76/5 मटी प.६३, 64 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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