________________ कथाएं : परि-२ 593 नगर में सुरूप नामक वणिक् निवास करता था। उसका शरीर कामदेव से भी अधिक सुंदर था। सुंदर स्त्रियां उसकी अभिलाषा करती रहती थीं। वह परस्त्री में अनुरक्त रहता था। एक बार वह राजा के अंत:पुर के समीप से गुजर रहा था। अंत:पुर की रानियों ने रागयुक्त दृष्टि से उसे देखा। उसने भी उसी दृष्टि से उनको देखा। उनका आपस में अनुराग हो गया। दूती के माध्यम से वह प्रतिदिन उनके साथ भोग भोगने लगा। राजा के पास यह वृत्तान्त पहुंचा। जब वह अंत:पुर में पहुंचा तो राजपुरुषों ने उसको पकड़ लिया। वह जिन आभूषणों को पहनकर अंत:पुर में प्रविष्ट हुआ था, उन्हीं आभूषणों से युक्त उसको सब लोगों के समक्ष नगर के चौराहे पर अपमानपूर्वक मार दिया गया। अपने अंत:पुर का विनाश देखकर राजा बहुत दुःखी हो गया। उसका प्राणघात करने पर भी राजा का क्रोध शान्त नहीं हुआ। उसने अपने दूतों को बुलाकर कहा'नगर में जाकर ज्ञात करो कि कौन उस दुष्ट की प्रशंसा कर रहा है और कौन उसकी निंदा कर रहा है।' दोनों की मुझे जानकारी-दो। कार्पटिक वेश में राजपुरुष पूरे नगर में घूमने लगे। कुछ लोग कह रहे थे कि जन्म लेने वाला हर व्यक्ति मरता है। हम लोग अधन्य हैं क्योंकि अंत:पुर की रानियां कभी हमारी दृष्टिपथ पर नहीं आतीं लेकिन वह व्यक्ति धन्य है, जो चिरकाल तक उनका सुख भोगकर मरा है। दूसरे कुछ व्यक्ति कहने लगे—'यह व्यक्ति निंदा का पात्र है, अधन्य है जिसने उभय लोक के विरुद्ध कार्य किया है। राजा की रानियां मां के समान होती हैं। उनके साथ भोग भोगने वाला शिष्ट व्यक्तियों के द्वारा प्रशंसा का पात्र कैसे हो सकता है?' राजपुरुषों ने उन दोनों प्रकार के लोगों को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया। जो उसकी निंदा करने वाले थे, उनको बुद्धिमान् मानकर राजा ने सम्मानित किया तथा प्रशंसा करने वालों को मौत के मुख में डाल दिया। 33. आधाकर्म : शाल्योदन-दृष्टान्त . संकुल नामक गांव में जिनदत्त नामक श्रावक रहता था। उसकी पत्नी का नाम जिनमति था। उस गांव में कोद्रव और रालक धान्य अधिक मात्रा में उगते थे। साधु लोग भी वही भोजन ग्रहण करते थे। गांव का उपाश्रय स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित सम भूतल वाला तथा अत्यन्त रमणीय था। उस उपाश्रय में स्वाध्याय भी निर्विघ्न रूप से होता था। उस गांव में शाल्योदन नहीं था अतः किसी भी आचार्य का प्रवास वहां नहीं होता था। - एक दिन संकुल गांव के पास भदिल नामक ग्राम में आचार्य का आगमन हुआ। उन्होंने क्षेत्रप्रतिलेखन के लिए साधुओं को संकुल ग्राम में भेजा। साधुओं ने श्रावक जिनदत्त के पास आकर वसति की याचना की। जिनदत्त ने अत्यन्त प्रसन्नता से कल्पनीय वसति में रहने की अनुज्ञा प्रदान की। साधुओं ने स्थण्डिल भूमि एवं सम्पूर्ण गांव की प्रतिलेखना की। उपाश्रय में आकर जिनदत्त श्रावक ने ज्येष्ठ साधु से 1. जीभा 1129, पिनि 69/3 मटी प. 49 /