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________________ कथाएं : परि-२ 591 27. आदान निक्षेप समिति' : प्रतिलेखना क्यों? एक गांव में कुछ साधुओं का पदार्पण हुआ। एक साधु ने बिना प्रतिलेखना किए पात्रों को एक स्थान पर रख दिया। उनमें से एक साधु प्रतिलेखना करके पात्र रखने लगा तो वह साधु बोला "इन प्रेक्षित पात्र आदि की पुनः प्रतिलेखना क्यों कर रहे हो, क्या यहां सांप है?" इस बात को सुनकर सन्निहित क्षेत्र रक्षक देवता ने सांप की विकुर्वणा कर दी। जब प्रथम साधु ने उपकरणों को खोला तो उसे सांप दिखाई दिया। उसे अपनी त्रुटि का अहसास हुआ। उसने साधु के समक्ष मिथ्याकार का उच्चारण किया। 28. परिष्ठापना समिति : मुनि धर्मरुचि ___मुनि धर्मरुचि ने दीक्षित होते ही मल-मूत्र आदि के उपसर्ग में जागरूक रहने का अभिग्रह ग्रहण किया। उसकी जागरूकता से एक बार सुधर्मा-सभा में इंद्र का आसन चलित हुआ। इन्द्र ने उसकी देवताओं के मध्य प्रशंसा की। एक मिथ्यादृष्टि देव को इंद्र की बात पर श्रद्धा नहीं हुई। वह मर्त्यलोक में आया और उसने साधु के उत्सर्ग स्थान में चींटियों की विकुर्वणा कर दी। प्रस्रवण की बाधा से पीड़ित होने पर दूसरे साधु ने कहा—'तुम प्रस्रवण का परिष्ठापन कर दो।' साधु प्रस्रवण को परिष्ठापित करने हेतु जहां-जहां गया, वहां उसे चींटियां दिखाई दीं। जब साधु क्षेत्र की प्रतिलेखना करते-करते क्लान्त हो गया तो वह उस प्रस्रवण को पीने लगा। देवता मूल रूप में प्रकट हुआ और उसे रोकते हुए कहा कि तुम इसे मत पीओ। मैं तुम्हारी दृढ़ता की परीक्षा ले रहा था। देव धर्मरुचि मुनि को भक्तिपूर्वक वंदना करके लौट गया। 29. प्रतिसेवना : चोर-दृष्टान्त ... किसी गांव में बहुत डाकू रहते थे। एक बार वे किसी सन्निवेश से गाय चुराकर अपने गांव की ओर जाने लगे। रास्ते में उनको अन्य डाकू भी मिल गए। वे भी उनके साथ चलने लगे। चलते-चलते वे अपने गांव के पास आ गए। गांव की सीमा आने पर वे निर्भय हो गए। भोजन-वेला में उन्होंने कुछ गायों को मारकर उनका मांस पकाना प्रारंभ किया। इसी बीच कुछ अन्य पथिक भी वहां आ गए। डाकुओं ने उन्हें भी भोजन हेतु आमंत्रित किया। गोमांस पकने पर कुछ दस्यु एवं पथिकों ने उसे खाना प्रांरभ कर दिया। गोमांस का भक्षण बहुत बड़े पाप का हेतु है, यह सोचकर कुछ पथिकों ने वह भोजन नहीं किया। केवल दूसरों को परोसने का कार्य किया। इसी बीच हाथ में तलवार धारण किए हुए कुछ राजपुरुष वहां आ गए। उन्होंने 1. आवश्यक चूर्णि भाग 2 पृ.९५ में आदान-निक्षेप समिति के अन्तर्गत निम्न कथा का उल्लेख है। किसी आचार्य के पास एक श्रेष्ठि-पुत्र दीक्षित हुआ। पांच सौ साधुओं के संघ में वह सबसे छोटा था। पांच सौ साधुओं में कोई भी आता तो वह शैक्ष मुनि उनके दंड को उठाकर भूमि का प्रमार्जन करके उसे रखता था। जो कोई मुनि आता या बाहर जाता तो वह शैक्ष सभी के दंड लेकर उनको व्यवस्थित रखता था। वह शैक्ष साधु यतनापूर्वक चपलता रहित होकर त्वरित गति से यह क्रिया करता था। बहुत समय बीतने पर भी वह इस क्रिया को करता हुआ क्लान्त या श्रान्त नहीं हुआ। यह चौथी समिति की जागरूकता का उदाहरण है। 2. जीभा 850-53, आवचू 2 पृ. 95 / 3. जीभा 855-60, आवचू 2 पृ. 95 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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