________________ कथाएं : परि-२ 589 26. एषणा समिति : नंदिषेण कथानक वसुदेव किसी अन्य जन्म में मगध के नंदिग्राम में गौतम नामक उपदेष्टा ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम वारुणि था। एक बार वह गर्भवती हुई। जब गर्भ छह माह का था, तभी ब्राह्मण दिवंगत हो गया। बालक का जन्म हुआ, उसका नाम नंदिषेण रखा गया। ननिहाल में मामा ने उसका भरण-पोषण किया। बड़ा होने पर बालक मामा के यहां काम करने लगा। लोगों ने बालक से कहा-"तुम मामा के यहां कार्य करते हो पर तुम्हारा यहां कुछ नहीं है।" बालक ने इस संदर्भ में अपने मामा से बात की। मामा ने कहा'तुम लोगों की बात में मत आओ मेरी तीन पुत्रियां हैं, उनमें जो ज्येष्ठा है, उसके साथ तुम्हारा विवाह कर दूंगा।' मामा की बात सुनकर वह निश्चिन्त होकर कार्य करने लगा। विवाह का समय आने पर बड़ी पुत्री ने उसके साथ विवाह की अनिच्छा प्रकट कर दी। मामा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा "तुम चिन्ता मत करो, मैं दूसरी लड़की के साथ तुम्हारी शादी कर दूंगा।" दूसरी पुत्री ने भी उसके साथ विवाह की अनिच्छा व्यक्त कर दी। इसी प्रकार तीसरी पुत्री ने भी अपनी असहमति प्रकट कर दी। इस घटना से नंदिषेण विरक्त हो गया। ___ एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधुओं के साथ नंदिवर्धन आचार्य उस गांव में आए। साधु भिक्षार्थ गए। नंदिषेण ने साधुओं से पूछा “आप कौन हैं? आपका धर्म कैसा है?" साधुओं ने कहा-" इस प्रश्न का उत्तर आचार्य देंगे। वे अभी उद्यान में हैं, वहां जाकर उनसे पूछ लो।" नंदिषेण वहां गया और आचार्य के समक्ष जिज्ञासा प्रकट की। आचार्य से समाधान सुनकर वह उनके पास प्रव्रजित हो गया। उसने बेले-तेले की तपस्या अंगीकार करके यह अभिग्रह ग्रहण किया कि मैं बाल और ग्लान आदि की सेवा करूंगा। दीक्षित होते ही नंदिषेण सेवा के कार्य में संलग्न हो गया। वृद्ध, ग्लान और शैक्ष की सेवा करने से उसका यश फैलने लगा। ..एक बार इंद्र ने सुधर्मासभा में उसके गुणों की उत्कीर्तना करते हुए कहा "नंदिषेण मुनि अदीन भाव से ग्लान, वृद्ध आदि साधुओं की सेवा में उपस्थित रहता है। जिस साधु को जिस वस्तु की अपेक्षा रहती है, वह उसको लाकर देता है।" एक मिथ्यादृष्टि देव को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने दो श्रमणों के रूप की विकुर्वणा की। एक श्रमण अतिसार रोग से ग्रसित होने के कारण अटवी में स्थित हो गया, दूसरा श्रमण साधुओं के समक्ष जाकर बोला "एक साधु अटवी में ग्लान हो गया है। जो साधु उसकी सेवा करना चाहे, वह अतिशीघ्र तैयार हो जाए। नंदिषेण ने यह बात सुनी। बेले की तपस्या का पारणा करने हेतु आहार आया हुआ था लेकिन उसने पारणा न करके मुनि से पूछा कि वहां क्या कार्य करना है? किस 1. आवश्यकचूर्णि में नंदिग्राम के स्थान पर शालिग्राम नाम का उल्लेख है तथा वहां उपदेष्टा ब्राह्मण के स्थान पर बिना नामोल्लेख के गाथापति का उल्लेख है। (आव 2 पृ. 94)