________________ 588 जीतकल्प सभाष्य 22. कायगुप्ति : स्थण्डिल भूमि की यतना एक साधु सार्थ के साथ विहार कर रहा था। उसे मार्ग में कहीं भी स्थण्डिल भूमि नहीं मिली। बहुत खोज करने पर उसे पैर टिकाने जितना स्थान मिला। उसने एक पैर पर स्थित होकर सारी रात बिता . दी। उसका सारा शरीर अकड़ गया लेकिन उसने अस्थण्डिल भूमि में पैर नहीं रखा। साधु को इसी प्रकार कायगुप्त होना चाहिए। 23. कायगुप्ति : देव-परीक्षा एक साधु ईर्यासमिति में बहुत सजग था। वह किसी भी भय की परिस्थिति में गति-भेद नहीं करता था। एक दिन सुधर्मा-सभा में इन्द्र ने उसकी प्रशंसा की। इन्द्र की बात पर एक देवता को विश्वास नहीं हुआ। वह साधु की परीक्षा करने आया। देवता ने साधु के रास्ते में अनेक सूक्ष्म मेंढ़कों की विकुर्वणा * कर दी। साधु ने यतनापूर्वक धीरे-धीरे अन्य स्थान पर उनको संक्रमित कर दिया। तत्पश्चात् देवता ने हाथी की विकुर्वणा की। वह उसके पीछे चिंघाड़ता हुआ आने लगा लेकिन फिर भी साधु की गति में कोई अंतर नहीं आया। हाथी ने साधु को सूंड से ऊपर उठाकर नीचे पटक दिया। नीचे गिरता हुआ भी वह साधु बोला "यदि मेरे द्वारा जीवों की विराधना हुई हो तो मेरे पाप मिथ्या हों।" नीचे गिरते हुए भी उसने स्वयं की चिंता न करके जीवों की विराधना न हो, इस बात का चिन्तन किया। साधु की ईर्या समिति में सजगता देखकर देव संतुष्ट होकर वंदना करके चला गया। 24. ईर्यासमिति : अर्हन्नक साधु की सजगता अर्हन्नक नामक साधु ईर्या समिति में सजग था। एक बार वह गड्ढे में गिर गया। प्रान्त देवता के . छल से उसका पांव छिन्न हो गया लेकिन अन्य देवता ने उसके पैर का संधान कर दिया। 25. भाषा समिति : साधु की जागरूकता एक साधु भाषा समिति में अत्यन्त सजग था। वह भिक्षार्थ निकला। उस नगर पर किसी अन्य राज्य के राजा ने आक्रमण कर दिया। नगर पर चढ़ाई करने वाले किसी सैनिक ने पूछा "यहां कितने हाथी और घोड़े हैं?" कितनी धन राशि, काष्ठ तथा धान्य आदि हैं? नगर सुखी है अथवा दुःखी? राजा से रुष्ट नागरिक कितने हैं? भाषा समिति में सजग उस साधु ने उत्तर दिया कि मैं स्वाध्याय और ध्यानयोग में लीन रहता हूं अतः मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता हूं। सैनिक ने पुनः साधु से पूछा-"भिक्षार्थ घूमते हुए तुमने कुछ नहीं देखा, कुछ नहीं सुना, यह कैसे संभव है?'' मुनि ने उत्तर देते हुए कहा'मुनि बहुत बातें कान से सुनता है, अनेक दृश्य आंखों से देखता है लेकिन देखा या सुना हुआ सब कुछ मुनि कह नहीं सकता। १.जीभा 797,798 / २.जीभा 799-802 / 3. जीभा 819 / 4. जीभा 820-23, आवचू 2 पृ. 93,94 / /