________________ 582 जीतकल्प सभाष्य अकल्पनीय हैं' यह कहकर उसे लाने का निषेध कर दिया। अतिपरिणामक शिष्य पोटली बांधकर बीज लेकर आ गया। गुरु ने कहा- "मैंने तुमको उगने में असमर्थ अचित्त ईमली के बीज लाने को कहा था।" इस प्रसंग में परिणामक शिष्य ने गुरु को निवेदन किया कि मैं किस प्रकार के बीज लेकर आऊं? उगने में समर्थ अथवा असमर्थ? साथ ही यह भी बताने की कृपा करें कि बीज कितनी मात्रा में लेकर आऊं?" इस बात को सुनकर गुरु ने कहा-"अभी बीज का प्रयोजन नहीं है, जब मुझे आवश्यकता होगी, तब तुमको बता दूंगा। अभी तो मैंने विनोद में तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ऐसा कहा था।" 16. प्रवचन की प्रभावना ___एक राजा ने साधुओं को कहा कि ब्राह्मणों के पैरों में पड़ो। उसे बहुत समझाया गया लेकिन वह नहीं माना। तब संघ को एकत्रित किया गया। वहां साधुओं को कहा गया कि जिसके पास प्रवचन- . प्रभावना की शक्ति हो, वह उसका प्रयोग करे फिर चाहें वह सावध हो या निरवद्य। तत्र उपस्थित एक साध ने कहा-'मैं विद्या का प्रयोग करूंगा।' संघ के प्रतिनिधि व्यक्ति राजा के पास गए और निवेदन किया कि जिन ब्राह्मणों के चरण-स्पर्श करने हैं. उन सबको एक स्थान पर एकत्रित कर दो। हम एक साथ उनके चरणों का स्पर्श करेंगे। किसी एक या दो ब्राह्मणों का नहीं। राजा ने वैसा ही किया। एक ओर श्रमण समुदाय एकत्रित हो गया तथा दूसरी ओर ब्राह्मण समुदाय। विद्यातिशय धारी मुनि ने कनेर की लता को हाथ में लेकर उसे अभिमंत्रित करके सुखासन में बैठे ब्राह्मणों की ओर अलातचक्र के आकार में घुमाया। तत्काल ही सारे ब्राह्मणों के सिर नीचे की ओर झुक गए। तब रुष्ट साधु ने राजा को कहा-'भो राजन्! यदि अब भी तुम अपने आदेश को वापस नहीं लेते हो तो इसी प्रकार सेना और वाहन सबको समाप्त कर दूंगा।' तब भयभीत होकर राजा संघ के समक्ष प्रणत हो गया और उसका क्रोध उपशान्त हो गया। अन्य मान्यता के अनुसार वह राजा भी वहां समाप्त हो गया। इस प्रकार प्रवचन की प्रभावना के लिए प्रतिसेवना करता हुआ साधु शुद्ध होता है। 17. आर्य वज्र द्वारा श्रावक का उद्धार अनेक विद्याओं के धारक आचार्य वज्र विहार करते हुए पूर्वदेश से उत्तरापथ की ओर गए। वहां दुर्भिक्ष की स्थिति आ गई। सारे मार्ग व्युच्छिन्न हो गए। सम्पूर्ण संघ एकत्रित होकर आचार्य वज्र के पास आकर बोला—'भंते ! हमारा निस्तार करें।' आचार्य पटविद्या के जानकार थे। उन्होंने एक पट (वस्त्र) पर संघ को बिठाया और वह पट आकाश में उड़ने लगा। उस समय शय्यातर चारा लाने के लिए कहीं गया १.जीभा 571-80 / 2. यद्यपि इस कथा का भाष्यकार ने कोई संकेत नही दिया है। निशीथ भाष्य (487) में इसी गाथा के अभिवायणा पवयणे' पाठ की व्याख्या में चूर्णिकार ने इस कथा का उल्लेख किया है अत: यहां भी प्रसंगवश इस कथा का निशीथ चूर्णि से अनुवाद कर दिया गया है। 3. जीभा 605, निभा 487, चू 1 पृ. 163 /