________________ कथाएं : परि-२ 583 हुआ था। उसने संघ को आकाश-मार्ग से जाते देखा। तत्काल अपने हासिये से चोटी को काटकर वह बोला—'भगवन् ! मैं भी आपका साधर्मिक हूं।' तब वह भी इस सूत्र को पढ़ते हुए उनके साथ लग गया साहम्मियवच्छल्लम्मि, उज्जता उज्जता य सज्झाए। चरणकरणम्मि य तहा, तित्थस्स पभावणाए य॥ 18. आर्य वज्र की दीक्षा ___ अवंती जनपद के तुंबवन नामक सन्निवेश में धनगिरि नामक श्रेष्ठी रहता था। धनगिरि प्रव्रज्या ग्रहण करने को इच्छुक था। उसके माता-पिता निषेध करते थे। जहां-जहां माता-पिता उसके विवाह की बात करते, वहां-वहां उन कन्याओं को वह यह कह कर विपरिणत कर देता कि वह दीक्षा लेगा। उसी नगर में सेठ धनपाल की पुत्री सुनन्दा ने पिता से कहा—'मैं धनगिरि के साथ विवाह करूंगी।' पिता ने उसका विवाह कर दिया। सुनंदा का भाई आर्य समित आचार्य सिंहगिरि के पास पहले ही दीक्षित हो गया था। देवलोक से च्युत होकर एक वैश्रमण सामानिक देव सुनन्दा के गर्भ में उत्पन्न हुआ। तब धनगिरि ने सुनन्दा से कहा—'गर्भ से उत्पन्न पुत्र के कारण तुम दो हो जाओगी, अकेली नहीं रहोगी।' यह कहकर धनगिरि आचार्य सिंहगिरि के पास दीक्षित हो गया। . गर्भ के नौ मास बीते। सुनन्दा ने बालक का प्रसव किया। वहां आने वाली महिलाएं कहने लगीं 'यदि इस बालक के पिता प्रव्रजित नहीं होते तो अच्छा होता।' बालक ने जब यह सुना कि उसका पिता प्रव्रजित हो गया है तो वह चिंतन की गहराई में उतरा। उसे जातिस्मृति ज्ञान की प्राप्ति हो गई। अब वह रातदिन रोने लगा। उसने सोचा—'यदि निरंतर रोता रहूंगा तो परिवार के लोगों को मेरे से विरक्ति हो जाएगी, तब मुझे प्रव्रज्या लेने में सुविधा होगी।' इस प्रकार छह मास बीत गए। एक बार आचार्य उस नगरी में आए। तब मुनि आर्यसमित और धनगिरि ने आचार्य से पूछा'भंते! हम दोनों ज्ञातिजनों को दर्शन देने जाना चाहते हैं, आप आज्ञा प्रदान करें।' पक्षी की आवाज सुनकर आचार्य बोले-'आज महान् लाभ होगा। तुम्हें सचित्त या अचित्त—जो भी मिले, वह ले आना।' वे दोनों सुनंदा के यहां भिक्षार्थ गए। लोग उन्हें बुरा-भला कहकर पीड़ित करने लगे। बालक छह महीनों से रो रहा था अतः मां अत्यंत दु:खी थी। अन्य स्त्रियों ने सुनन्दा से कहा—'इस बालक को मुनियों के समक्ष रख दो।' सनन्दा बोली 'महाराज! मैंने इतने दिनों तक इसकी अनपालना की. अब आप इसकी संभाल करें।' मनि बोले 'बाद में तुम्हें पश्चात्ताप न हो।' दूसरे को साक्षी बनाकर मुनियों ने उस छह महीने के बालक को चोलपट्टे की झोली बनाकर उसमें ले लिया। बालक ने रोना बंद कर दिया। वे दोनों मुनि आचार्य के पास आए। भाजन भारी है, यह सोचकर आचार्य ने हाथ पसारे। उन्होंने झोली आचार्य के हाथ में दी। भार के कारण हाथ भूमि पर जा टिका। आचार्य बोले—'प्रतीत होता है कि इसमें वज्र है।' फिर देखा कि उसमें 1. जीभा 610, आवचू 1 पृ. 396, हाटी 1 पृ. 197 /