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________________ 574 जीतकल्प सभाष्य वही दृश्य देखा। आचार्य के मन में शंका हुई। उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा। उस स्त्री ने कहा-"मैं इस नगर की अधिष्ठात्री देवी हूं। यह सारा नगर शीघ्र ही जल-प्रवाह से नष्ट हो जाएगा। यहां बहुत से स्वाध्यायी और बहुश्रुत मुनि निवास करते हैं। उनके बारे में चिन्तन करके मैं रो रही हूं।" आचार्य ने पूछा'इस बात का विश्वास कैसे हो?' नगरदेवी ने कहा-"अमुक तपस्वी के पारणे में आया हुआ दूध रक्त रूप में परिवर्तित हो जाएगा। जहां तक जाने पर वह दूध स्वाभाविक रूप में परिणत हो जाए, वहां क्षेम होगा।" दूसरे दिन पारणे में क्षपक के लिए आया हुआ दूध रक्त में बदल गया। तब सम्पूर्ण संघ के मुख्य व्यक्तियों ने चिन्तन किया और अनशन स्वीकार कर लिया। 3. द्रव्य-संलेखना एक बार एक शिष्य आचार्य के पास भक्त-प्रत्याख्यान अनशन की आज्ञा लेने उपस्थित हुआ। आचार्य ने पूछा-"अनशन से पूर्व तुमने संलेखना की या नहीं?" शिष्य ने सोचा-'आचार्य मेरे कृश शरीर को देख रहे हैं, जो केवल हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया है फिर भी मुझे संलेखना की बात पूछ रहे हैं।' यह सोचकर क्रोध के आवेश में उसने अपनी अंगुलि तोड़कर दिखाते हुए कहा-'क्या आपको कहीं रक्त और मांस दिखाई देता है, जो आप यह पूछ रहे हैं कि मैंने संलेखना की है या नहीं?' शिष्य की बात सुनकर आचार्य बोले-"मैंने द्रव्य-संलेखना के विषय में नहीं पूछा था। यह तो तुम्हारे शरीर को देखकर : प्रत्यक्षतः जान लिया है।" मैंने भाव-संलेखना के विषय में जानना चाहा था और यह स्पष्ट दिखाई देता है कि तुमने भाव-संलेखना-कषायों का उपशमन नहीं किया है। जाओ, भाव-संलेखना का अभ्यास करो और फिर अनशन की बात सोचना। 4. आज्ञा का महत्त्व एक राजा ने अमात्य और कोंकण देशवासी नागरिक-इन दोनों को अपराधी मानकर उनको यह आज्ञा दी कि यदि दोनों पांच दिन के भीतर देश को छोड़कर नहीं जाएंगे तो उनका वध कर दिया जाएगा। दोनों ने आदेश सुना। कोंकण देशवासी नागरिक के पास तुम्बे और कांजी के पानी से भरे बर्तन थे। वह तत्काल तुम्बे और कांजी जल को छोड़कर उस देश से निकल गया। मंत्री घर आकर गाड़ी, बैल आदि की व्यवस्था कर घर को समेटने लगा। उस व्यवस्था में उसके पांच दिन निकल गए। छठे दिन राजा ने उसे शूली पर चढ़ा दिया। आज्ञा-भंग के कारण अमात्य मृत्यु को प्राप्त हो गया। ५.संग्राम द्वय : महाशिला कंटक और रथमुशल राजा कूणिक और चेटक के मध्य लड़े गए ये दो प्रमुख संग्राम थे। युद्ध का मुख्य कारण था १.जीभा 382, व्यभा 4278 टी प.६१ / 2. जीभा 399-402, व्यभा 4290,4291 टी प.६३। 3. जीभा 403, 404, व्यभा 4292, 4293 टी प.६३ /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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