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________________ 575 कूणिक की पटरानी पद्मावती द्वारा सेचनक हाथी और अठारह लड़ियों के हार की मांग करना। जब पद्मावती ने लोगों के मुख से यह सुना कि असली राजा तो बेहल्लकुमार है, जो राज्य-सुख को भोग रहा है तो कूणिक से आग्रह किया कि ये दोनों वस्तुएं बेहल्लकुमार से प्राप्त करें। प्रारम्भ में कूणिक ने रानी पद्मावती की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में उसने बेहल्लकुमार से इन दोनों वस्तुओं की मांग की। बेहल्लकुमार ने कहा- ये दोनों वस्तुएं मुझे पिताश्री ने दी हैं। यदि आप मुझे आधा राज्य दें तो मैं आपको ये दोनों वस्तुएं दे सकता हूं।' बेहल्लकुमार सेचनक हाथी और अठारह लड़ियों वाले हार की सुरक्षा हेतु अपनी रानियों के साथ नाना चेटक की शरण में चला गया। कूणिक ने चेटक के पास दूत के साथ संदेश भेजा कि वे बेहल्लकुमार के साथ हाथी एवं हार वापस भेजें। चेटक ने दूत के साथ प्रत्युत्तर दिया कि जिस प्रकार तुम मेरे दोहित्र हो, वैसे ही बेहल्ल भी है। यदि तुम उसको आधा राज्य दो तो मैं इनको वापस कर सकता हूं, अन्यथा यह मेरी शरण में है। कूणिक ने पुनः दूत भेजा लेकिन चेटक ने उसकी बात स्वीकृत नहीं की। क्रोधित होकर कूणिक ने अपने काल आदि दश भाइयों को बुलाकर कहा कि तुम लोग चेटक के साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाओ और अपने तीन हजार हाथियों, तीन हजार रथों, तीन हजार घोड़ों तथा तीन करोड़ सैनिकों से सन्नद्ध होकर नगर के बाहर पहुंच जाओ। काल आदि दसों भाई सन्नद्ध होकर नगर की सीमा पर पहुंच गए। राजा कूणिक ने तेतीस हजार हाथियों, तेतीस हजार घोड़ों, तेतीस हजार रथों तथा तेतीस करोड़ सैनिकों से युक्त होकर वैशाली की ओर प्रस्थान कर दिया। - जब चेटक को यह बात ज्ञात हुई तो उसने नौ मल्लवी, नौ लच्छवी तथा काशी और कौशल आदि अठारह देशों के राजाओं को युद्ध की सूचना दी। वे भी अपने सैन्यबल के साथ वहां पहुंच गए। राजा चेटक ने सत्तावन हजार हाथी, सत्तावन हजार घोड़े, सत्तवान हजार रथ तथा सत्तावन करोड़ मनुष्यों के साथ राज्य की सीमा के पास पड़ाव डाल दिया। कूणिक ने सर्वप्रथम गरुड़ व्यूह की रचना की। उसके विरुद्ध राजा चेटक ने शकट-व्यूह की रंचना की। कूणिक के दश भाई चेटक के बाण द्वारा मारे गए। यह देखकर कूणिक ने सोचा कि कहीं मेरा भी राजा चेटक के हाथ से वध न हो जाए अतः उसने पूर्वभव के दो मित्रों को याद किया, जो शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुए थे। वे दोनों इन्द्र सहायतार्थ पहुंचे। देवेन्द्र शक्र ने कूणिक के शरीर पर वज्रमय कवच का आवरण डाल दिया। महाशिलाकंटक युद्ध में कूणिक हस्तिरत्न उदाई पर आरूढ़ होकर युद्ध क्षेत्र में गया। शक्रेन्द्र ने महाशिलाकंटक संग्राम की विकुर्वणा की, जिसमें एक कंकर भी शिलारूप बन जाता था। इस संग्राम में चौरासी लाख मनुष्य मारे गए। चमरेन्द्र ने रथमुशल संग्राम की रचना की। बिना सारथी के रथ में एक मुशल रखा हुआ था, जिसके द्वारा फेंका गया कंकर भी मुशल जैसा प्रहार करता था। इस युद्ध में भी छियानवें लाख मनुष्यों का विनाश हुआ। १.निरयावलिका में केवल रथमुशल संग्राम का उल्लेख है। यह युद्ध किसने प्रवर्तित किया, युद्ध का स्वरूप कैसा था आदि का वर्णन वहां नहीं है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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