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________________ कथाएं (जीतकल्पभाष्य में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने प्रसंगवश अनेक कथाओं का संकेत किया है। वहां प्रायः कथाओं का संक्षिप्त उल्लेख है लेकिन कहीं-कहीं नंदिषेण आदि की कथाएं विस्तृत रूप से भी वर्णित हैं। चूंकि इस भाष्य पर न चूर्णि उपलब्ध है और न ही टीका अतः इस ग्रंथ में निर्दिष्ट प्रायः कथाओं का अनुवाद निशीथचूर्णि, आवश्यक चूर्णि, बृहत्कल्पभाष्य टीका, पिण्डनियुक्ति टीका तथा उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका आदि ग्रंथों के आधार पर किया गया है। जहां कहीं अन्य ग्रंथों को आधार बनाया है, वहां नीचे पाद-टिप्पण में उल्लेख कर दिया है।) १.संस्कारों का प्रभाव : तिलहारक दृष्टान्त एक बालक अधूरा स्नान करके बाहर खेलने चला गया। खेलते-खेलते वह तिलों के ढेर पर पहुंचा और उसमें लोटने लगा। लोगों ने उसे बालक समझकर नहीं रोका। उसका शरीर गीला था इसलिए उस पर तिल चिपक गए। वह तिलों सहित घर पहुंचा। मां ने शरीर पर चिपके हुए तिल देखे। उसने बालक के शरीर पर लगे सारे तिल झाड़ लिए और उन्हें एक पात्र में संगृहीत कर लिया। मां के मन में तिलों का लोभ जाग गया अतः उसने पुनः बालक को अधूरा स्नान कराकर भेजा। वह पुनः तिलों के ढेर पर गया और गीले शरीर से उस ढेर में प्रवेश कर तिलों सहित घर आ गया। मां ने उसे न डांटा और न ही वहां जाने से रोका। वह धीरे-धीरे तिल चुराने वाला बड़ा चोर बन गया। एक बार चोरी करते हुए उसे राजपुरुषों ने पकड़ लिया। राजा ने उसके वध की आज्ञा दे दी। वह मारा गया। राजा ने सोचा यह बालक मां के दोष से चोर हुआ है। राजपुरुषों ने माता को दंडित करने के लिए उसके स्तनों का छेद कर दिया। मां को गलत संस्कार देने का दंड मिल गया। एक दूसरा बालक भी अपूर्ण स्नान करके तिलों के ढेर में जा छिपा। उसके गीले शरीर पर तिल चिपक गए। तिल सहित शरीर से वह बालक घर पहुंचा। मां ने उसे डांटते हुए कहा कि पुनः ऐसा कभी मत करना। उसने शरीर से तिल झाड़ कर मूल स्वामी को वापस दे दिए। उस बालक में चोरी की आदत नहीं पनपी। वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा। मां को भी स्तनछेद जैसी पीड़ा सहन नहीं करनी पड़ी। २.संघ सहित अनशन कलिंग जनपद के काञ्चनपुर नगर में अनेक शिष्य परिवार के साथ बहुश्रुत आचार्य विहरण करते थे। वे एक दिन शिष्यों को सूत्र पौरुषी और अर्थपौरुषी की वाचना देकर संज्ञाभूमि में गए। जाते हुए रास्ते में एक बड़े वृक्ष के नीचे उन्होंने किसी देवी को स्त्री रूप में रोते हुए देखा। दूसरे और तीसरे दिन भी उन्होंने १.जीभा 308,309, व्यभा 4209, 4210 टी प.५२।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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