________________ 520 जीतकल्प सभाष्य 2540. चरम शब्द अंतिम का वाचक है। पाराञ्चित प्रायश्चित्तार्ह अपराध करने पर पुनः-पुनः उसमें प्रसक्त होने पर उसे अंतिम पारांचित प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। 2541. स्त्यानद्धि पारांचित आदि की शोधि को कहूंगा। लिंग पारांचित आदि की क्रमशः ये गाथाएं हैं९७. उसको लिंग, क्षेत्र, काल और तप से पारांचित किया जाता है। प्रकट रूप से प्रतिसेवना करने वाला तथा स्त्यानर्द्धि नींद वाला लिंग पाराञ्चित होता है। 98. वसति, निवेशन' -गृह, वाटक', साही-गली, नियोग, नगर, देश, राज्य, कुल, गण और संघ में जहां दोष से दूषित होता है, वहां से दूर करना क्षेत्र पाराञ्चित है। 99. जहां दोष उत्पन्न हुआ अथवा जहां दोष उत्पन्न होगा, यह जानकर उस-उस क्षेत्र से उसे दूर कर दिया जाता है, वह क्षेत्र पाराञ्चित है। 100. जितने काल का तप दिया जाता है, वह काल पाराञ्चित है। तप अनवस्थाप्य की भांति पाराञ्चित भी दो प्रकार का कहा गया है। 2542. आशातना और प्रतिसेवना अनवस्थाप्य में जितना काल है, पाराञ्चित में उत्कृष्ट और जघन्य उतना ही काल है। 2543. सामान्यतः तीन प्रकार के पाराञ्चित कहे गए हैं, इनमें जो विशेष है, उसको मैं कहूंगा। 2544. दुष्ट, प्रमत्त और अन्योन्य सेवन में प्रसक्त–इन तीनों के बारे में विशेष वर्णन को कहूंगा। 2545. इनमें जो स्वपक्ष और परपक्ष से विषयदुष्ट हैं, उसे क्षेत्र से पाराञ्चित किया जाता है, लिंग से नहीं। 2546. जो दोषों से अनुपरत होता है, उसे लिंग से पाराञ्चित कर दिया जाता है। शेष कषाय दुष्ट, प्रमत्त, अन्योन्यसेवी-ये नियमतः लिंग पाराञ्चित होते हैं। ये क्षेत्रतः और लिंग से पारांचित कहे गए हैं। 2547. शिष्य प्रश्न पूछता है कि पाराञ्चित के इतने ही भेद हैं या अन्य भी हैं? आचार्य उत्तर देते हैं कि अन्य भी भेद होते हैं। वे कैसे होते हैं? 2548. जो मुनि इंद्रिय-दोष और प्रमाद-दोष से उत्कृष्ट अपराध-पद को प्राप्त होता है। यदि वह सद्भाव समावृत अर्थात् पुनः ऐसा नहीं करूंगा, ऐसे निश्चय से युक्त हो जाता है और निम्न गुणों से युक्त होता है तो उस साधु को तप पाराञ्चित दिया जाता है। 2549-51. वज्रऋषभ संहनन से युक्त, धृति में वज्रकुड्य के समान, नवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु का १.जिस घर में निष्क्रमण और प्रवेश का एक ही द्वार हो, वह निवेशन कहलाता है। १.जीचूवि पृ.५८ निवेशनं एकनिष्क्रमणप्रवेशानि....गृहाणि। 2. ग्राम आदि से व्यवच्छिन्न सन्निवेश वाटक-पाटक कहलाता है। इसे मुहल्ला भी कहा जा सकता है।' १.जीचूवि पृ.५८ ; पाटको ग्रामादे र्व्यवच्छिन्नः सन्निवेशः। 3. दो साधुओं के द्वारा आपस में मुख और गुदा के द्वारा मैथुन सेवन करना।