________________ अनुवाद-जी-९५ 515 उसका क्रोध उपशान्त नहीं हुआ। गुरु ने अन्य को आचार्य स्थापित करके स्वयं अन्य गण में भक्तपरिज्ञा अनशन स्वीकृत कर लिया। शेष प्रथम आख्यान की भांति जानना चाहिए। मृत्यु के पश्चात् उसने यह कहकर दोनों आंखें निकाल ली कि तुमने मुझे उलूकाक्ष कहा था। 2489. एक शिष्य ने शिखरिणी-श्रीखण्ड के लिए गुरु को निमंत्रित किया। गुरु ने सारी शिखरिणी खा ली। शिष्य ने डंडा उठाया। उसी प्रकार गुरु ने अन्य गण में न जाकर वहीं भक्तप्रत्याख्यान अनशन स्वीकार कर लिया। 2490. इन दोषों के कारण गुरु को अज्ञात आचार और शील वाले अकेले शिष्य का सारा आहार आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए। 2491. ग्रहण करने की विधि यह है कि यदि सब शिष्य मात्रक ग्रहण करके गुरु को निमंत्रित करें तो गुरु कहे कि मुझे इतना पर्याप्त है। 2492. आग्रह करने पर वह थोड़ा-थोड़ा सबसे ग्रहण करे, न कि एक से सारा ग्रहण करे। दूसरे विकल्प के अनुसार एक शिष्य से भी गुरु आहार ग्रहण कर सकते हैं। 2493. जो गुरु के प्रति भक्ति रखता है, उनके मनोनुकूल है, गुरु के प्रायोग्य आहार को निश्रागृहों अथवा अनिश्रागृहों से ग्रहण करता है, उसी से गुरु को भक्तपान ग्रहण करना चाहिए, दूसरों से नहीं। एक के द्वारा पर्याप्त प्राप्त न होने पर गुरु थोड़ा-थोड़ा सभी से ग्रहण करे। 2494. लाभ होने पर भी आचार्य दूसरे साधुओं का आग्रह देखकर उनका लाया हुआ आहार ग्रहण करे। ग्रहण करने के पश्चात पीछे अवशिष्ट छोडे क्योंकि वे जानते हैं कि कौन उपचार से कह रहा है और कौन भावना से। 2495. गुरु के द्वारा भोजन करने पर जो अवशेष बचता है, वह बाल मुनियों को दिया जाता है, उनके . अभाव में उसे मंडलि-पात्र में डाल दिया जाता है। जो अन्य मात्रक में ग्लान के खाने पर बचा है, वह भी मंडलि-पात्र में डाल दिया जाता है। 2496. गुरु के अतिरिक्त शेष साधुओं का अवशिष्ट भक्तपान मंडलि-पात्र में नहीं डाला जाता। जो भक्तपान ग्लान आदि के लिए पृथक्-पृथक् गृहीत है, उनमें से बचा हुआ आहार मंडलि-पात्र में डाला जाता है। याचना से प्राप्त भक्तपान को मंडलि-पात्र में नहीं डाला जाता। 2497. अतिथि साधुओं के लिए अथवा ग्लान के लिए लाया आहार यदि अधिक हो जाए तो उसे परिष्ठापित कर दिया जाता है। यह ग्रहण और भोजन की विधि है। अविधि ग्रहण के ये दोष हैं - 2498. सरसों की भाजी आदि स्वपक्ष दुष्ट के उदाहरण हैं। परपक्ष में स्वपक्ष के अन्तर्गत उदायी मारक साधु का उदाहरण है। स्वपक्ष में परपक्ष के अन्तर्गत पालक मंत्री का उदाहरण ज्ञातव्य है। 1-3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2. कथा सं.६१-६३।