________________ 514 जीतकल्प सभाष्य प्राप्त होता है क्योंकि जिनेन्द्र तो केवल अर्थ की देशना देते हैं, गणधरों से सूत्र की उत्पत्ति होती है। 2478. आशातना के द्वारा पाराञ्चित प्रायश्चित्त प्राप्त करने वाले का मैंने संक्षेप में वर्णन किया, अब प्रतिसेवना पाराञ्चित का संक्षेप में वर्णन करूंगा। 95. जो कषाय और विषय के कारण स्वलिंग में दुष्ट होता है, राजा का वध तथा उसकी पटरानी के साथ प्रतिसेवना करता है, उसकी प्रतिसेवना लोगों में प्रकाशित होती है तो वह प्रतिसेवना पारांचित है। 2479. सूत्र में दुष्ट, प्रमत्त आदि तीन प्रकार के प्रतिसेवना पारांचित वर्णित हैं, उनका मैं संक्षेप में वर्णन करूंगा। 2480. दुष्ट पारांचित, प्रमत्त पारांचित और अन्योन्य प्रतिसेवना प्रसक्त-इन तीनों का विस्तार से यथाक्रम वर्णन करूंगा। 2481. दुष्ट पारांचित दो प्रकार का होता है-कषाय दुष्ट और विषय दुष्ट। कषाय दुष्ट दो प्रकार का होता है-स्वपक्ष दुष्ट और परपक्ष दुष्ट। यहां स्वपक्ष और परपक्ष दुष्ट की चतुर्भंगी है। 2482. सरसों की भाजी, मुखवस्त्रिका, उलूकाक्ष, शिखरिणी-ये चार दृष्टान्त स्वपक्ष कषायदुष्ट के हैं। इनकी प्ररूपणा इस प्रकार है। 2483. सरसों की भाजी प्राप्त करके शिष्य ने गुरु को निमंत्रित किया। गुरु ने सारी भाजी खा ली। शिष्य कुपित हो गया। गुरु ने क्षमायाचना की पर वह उपशान्त नहीं हुआ, तब गुरु ने उस गण में अन्य को आचार्य स्थापित करके स्वयं अन्य गच्छ में जाकर भक्तप्रत्याख्यान अनशन स्वीकार कर लिया। ' 2484. दुष्ट शिष्य ने गुरु के बारे में पूछा लेकिन किसी ने गुरु के बारे में नहीं बताया। किसी दूसरे से उसने पूछा कि गुरु ने शरीर कहां त्यागा है? गुरु ने पहले ही कह दिया था कि उस दुष्ट शिष्य को मेरे बारे में मत बताना अतः किसी ने नहीं बताया। अंत में वह जानकारी प्राप्त कर गुरु के परिष्ठापित शरीर के पास पहुंचा और उनके दांतों को तोड़ दिया। 2485, 2486. शिष्य उत्कृष्ट मुखवस्त्रिका लेकर आया। गुरु को दिखाने पर गुरु ने वह ले ली। रुष्ट होकर उसने रात्रि में प्रसुप्त गुरु का गला पकड़ लिया। सम्मूढ़ होकर गुरु ने भी उसका गला पकड़ लिया। वे दोनों कालधर्म को प्राप्त हो गए। 2487, 2488. सूर्यास्त होने पर भी तुम सिलाई कर रहे हो अत: तुम उल्लू के समान आंखों वाले हो। गुरु के द्वारा ऐसा कहने पर वह रुष्ट होकर बोला -'मैं तुम्हारी आंखों को उखाड़ दूंगा।' क्षमा मांगने पर भी * स्वपक्ष में स्वपक्ष दुष्ट। * स्वपक्ष में परपक्ष दुष्ट / * परपक्ष में स्वपक्ष दुष्ट। * परपक्ष में परपक्ष दुष्ट / इन चारों चतुर्भंगियों के उदाहरण निशीथभाष्य एवं पंचकल्पाष्य में मिलते हैं। देखें निभा 3688-90, पंकभा 458-60 / 2, 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 59, 60 /