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________________ 506 जीतकल्प सभाष्य रुपए देती है? उसको आचार्य ने कहा कि तृण, काष्ठ, वस्त्र, रूई, कपास, तेल, गुड़, धान्य आदि नगर के अंदर स्थापित कर दो। . 2402, 2403. दूसरे वणिक् को आचार्य ने कहा कि सब कुछ देकर तुम तृण, काष्ठ आदि ग्रहण करके नगर के बाहर वर्षाकाल तक स्थापित कर दो। घर में तृण आदि स्थापित करने पर आग लगने से नगर जल गया। तृण और काष्ठ का पुंज अत्यन्त मूल्यवान् हो गया। 2404. दूसरे वणिक् का सब कुछ जल गया। तब वह आचार्य के पास आकर बोला-'अहो! मैं उत्साहित बना हुआ आपके पास से सही बात कैसे नहीं जान सका?' 2405. नैमित्तिक आचार्य बोले- क्या शकुनिका निमित्त देती है?' आचार्य को रुष्ट जानकर वणिक् बोला-'कभी भूल हो जाती है, आप मुझे क्षमा करें।' 2406, 2407. इस प्रकार के निमित्त से अर्थ उत्पन्न करने वाला कोई ऐसा पुरुष दीक्षा हेतु उद्यत हो जाए तो वैसे पुरुष की उस क्षेत्र में उपस्थापना नहीं होती। उस क्षेत्र में जितने समय तक रहे, तब तक भी उसकी उपस्थापना नहीं होती। यदि उसी क्षेत्र में उपस्थापना होती है तो वह अनवस्थाप्य है। 2408. अन्य क्षेत्र में ले जाकर उसकी उपस्थापना करनी चाहिए। उस क्षेत्र में उपस्थापना न करने के क्या कारण है? आचार्य कहते हैं कि उन कारणों को सुनो। 2409. पूर्वाभ्यास के कारण नैमित्तिक से लोग निमित्त पूछते हैं। वह ऋद्धि के गौरव से, स्नेह या भय से लाभ और अलाभ का कथन कर सकता है। जैसे खुजली का रोगी खुजली किए बिना नहीं रह सकता, वैसे ही वह ज्ञान परीषह को सहन नहीं कर सकता। 2410. इसलिए उस स्थान पर उसको भावलिंग नहीं देना चाहिए। यदि कारणवश देना पड़े तो अशिव, दुर्भिक्ष आदि कारणों के उपस्थित होने पर उसे लिंग दिया जा सकता है। 2411. उसको असहाय या अकेला नहीं छोड़ा जाता। वहां लोगों के द्वारा निमित्त पूछने पर वह कहता है कि मैं निमित्त भूल गया हूं। अथवा उत्तमार्थ-संथारे के लिए उसे वहीं लिंग दिया जा सकता है। 2412. इस प्रकार अवसन्न गृहस्थ को द्रव्य और भाव-दोनों ही लिंग नहीं दिए जाते। उत्तमार्थ के लिए दिया जा सकता है। 2413. इस प्रकार अर्थादान में जो शेष अनवस्थाप्य होते हैं, उनमें साधर्मिक स्तेन, अन्यधार्मिक स्तेनइन दोनों के प्रायश्चित्त में भजना है। 2414. वह भजना क्या है? आहार का स्तैन्य करने पर लघुमास, उपधि का स्तैन्य करने पर चतुर्लघु तथा सचित्त का स्तैन्य होने पर चतुर्गुरु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है अथवा एक आदेश से ये अनवस्थाप्य हैं। 2415. मतान्तर से उसे अनवस्थाप्य क्यों कहा गया है, इसका कारण सुनो। वह कषाय आदि को शान्त नहीं करता तथा प्रायः दोषों का सेवन करता है। 2416. अथवा भिक्षु हस्तताल आदि पदों में तीन प्रकार का प्रायश्चित्त प्राप्त करता है। उपाध्याय को नवां
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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