________________ अनुवाद-जी-८७ 505 2386. चोर तथा श्वापद आदि का भय होने पर तथा गण और गणी के अत्यन्त विनाश की स्थिति उत्पन्न होने पर गीतार्थ साधु कालातिक्रम--शीघ्र ही हस्तताल की इच्छा करते हैं। 2387. इस प्रकार बोधिक-चोर आदि आगाढ़ स्थिति उत्पन्न होने पर जिस साधु का जो सामर्थ्य हो, वह उसको समाप्त नहीं करता, काम में लेता है। 2388. हिंसा करता हुआ भी कृतकरण मुनि दोष को प्राप्त नहीं होता। विशुद्ध आलम्बन वाला वह श्रमण अल्प से बहुत को प्राप्त करने की इच्छा करता है। 2389, 2390. आचार्य अथवा गच्छ, कुल, गण या संघ के विनाश का अवसर होने पर यदि पंचेन्द्रिय का वध होता है तो भी उस स्थिति का निस्तारण करना चाहिए। ऐसा करने पर तीर्थ की अव्यवच्छित्ति होती है। यदि शरीर का विनाश हो जाए तो भी वह आराधक होता है। 2391. ऐसे आगाढ़ कारण उपस्थित होने पर सामर्थ्य या विद्यातिशय होने पर जो उसका प्रयोग नहीं करता है, उसको विराधक कहा गया है। 2392-95. यह हस्तताल का वर्णन है, हस्तालम्ब इसे जानना चाहिए। दुःख से पीड़ित प्राणियों के परित्राण हेतु, अशिव, नगर पर चढ़ाई, वैशस-रोमाञ्चकारी दुःख उत्पन्न होने पर अथवा अन्य इसी प्रकार के कष्टों से अभिभूत होने पर लोगों को यह विश्वास हो जाता है कि अमुक आचार्य दुःख को उपशान्त कर सकते हैं। मरणभय से अभिभूत उन पौरजनों के दुःख को जानकर अथवा उनके द्वारा कहने पर आचार्य या साधु प्रतिमा करके (अभिचारुक) मंत्रों का जाप करते हुए उस प्रतिमा को मध्य से बींधते हैं, यह हस्तालम्ब है। अब मैं हस्तादान-अर्थादान के बारे में कहूंगा। निमित्त आदि के द्वारा अर्थ को उत्पन्न करना हस्तादान है, इसमें यह उदाहरण है। 2396. उज्जयिनी नगरी में अवसन्न आचार्य रहते थे। वहां दो व्यापारी आचार्य से पूछकर व्यापार करते 'थे। आचार्य जैसा कहते, वे वैसा ही करते थे। 2397-01. भोगाभिलाषी होने के कारण आचार्य के भानजे ने लिंग छोड़ दिया था। आचार्य ने अनुकम्पा वश कहा कि बिना अर्थ के तुम क्या करोगे? अतः तुम उन वणिकों के पास जाओ और कहो कि मुझे धन दो। भानजे ने वहां जाकर धन के लिए कहा। उनमें से एक वणिक् ने कहा- 'मेरे पास अर्थ कहां से आया? क्या शकुनिका रुपए देती है?' दूसरा वणिक् टोकरी भरकर नौली लेकर आया और बोला कि तुमको जितनी नौली चाहिए, उतनी ग्रहण कर लो। प्रयोजन के अनुसार उसने नौलियां ले लीं। दूसरे वर्ष व्यापारियों ने पूछा कि हम क्या ग्रहण करें? जिस व्यापारी ने कहा था कि क्या शकुनिका १.बृहत्कल्पभाष्य की टीका में इस गाथा का स्पष्टीकरण किया गया है। जब नागरिक लोग परेशान होकर आचार्य ___ के पास जाते हैं तो आचार्य उन पर अनुकम्पा करके अचित्त प्रतिमा बनाकर अभिचारुक मंत्रों का जप करते हुए उस प्रतिमा को मध्य से बींध देते हैं। इससे कुलदेवता भाग जाता है और देवकृत सारा उपद्रव शान्त हो जाता है। '२.कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.५८।