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________________ अनुवाद-जी-८७ 503 2363. निजक माता-पिता आदि सम्बन्धियों की आज्ञा के बिना अप्राप्तवय वाले पुरुष को दीक्षित नहीं करना चाहिए। यदि वह अपरिगृहीत है तथा शेष बाल, जड्ड आदि दोषों से रहित है तो अव्यक्त को प्रव्रजित करना कल्प्य है। 2364. नारी प्रायः अपरिगृहीता नहीं होती अतः बिना आज्ञा उसे दीक्षा देना कल्प्य नहीं होता। कोई अदत्त नारी भी दीक्षा के लिए कल्प्य होती है, जैसे-करकंडु की माता रानी पद्मावती' और क्षुल्लक कुमार की माता यशोभद्रा। 2365. आहार के सम्बन्ध में अपवाद यह है कि दुर्गम मार्ग या दुर्भिक्ष आदि कारणों से अदत्त ग्रहण किया जा सकता है। आगाढ़ स्थिति में विविध उपधि चुराई जाने पर अदत्त उपधि ग्रहण की जा सकती है। 2366. स्वलिंगियों की थली-देहली में पहले भोजन की याचना करनी चाहिए -उनके द्वारा न देने पर बलात् भी ग्रहण किया जा सकता है। यदि अन्यतीर्थिक दुष्ट या दारुण स्वभाव के हैं तो प्रच्छन्न रूप से भी उपधि आदि ग्रहण की जा सकती है। 2367. परलिंगियों में भी पहले याचना करने पर नहीं मिलता तो प्रच्छन्न रूप से अदत्त ग्रहण किया जा सकता है। गृहस्थों से भी आगाढ़ कारण में अदत्त ग्रहण किया जा सकता है। 2368. आहार और उपधि के ग्रहण सम्बन्धी आपवादिक स्थिति का वर्णन सम्पन्न हुआ, अब अपवाद स्थिति में सचित्त अदत्त ग्रहण के विषय में कहंगा। 2369, 2370. पूर्वगत और कालिकानुयोग का विच्छेद जानकर कोई आचार्य उपयोग लगाए कि यह बालक युगप्रधान आचार्य होगा, तब वह गृहस्थ या अन्यतीर्थिक के बालक या बालिका का हरण कर सकता है। यह साधर्मिक स्तैन्य और अन्यधार्मिक स्तैन्य के बारे में वर्णन किया गया है। 2371. गाथा जीसू 87 के पूर्वार्द्ध में स्तैन्य के बारे में कहा गया, अब गाथा के पश्चार्द्ध का अर्थ कहूंगा। 2372. अब मैं यथाक्रम से हस्तताल के बारे में कहूंगा। हस्तताल क्या होता है? जो कहा जा रहा है, उसे तुम सुनो। 2373. हस्तताल, हस्तालम्ब और अर्थादान -ये तीन शब्द जानने चाहिए। इनमें जो नानात्व है, वह मैं यथाक्रम से कहूंगा। 2374. हाथ के द्वारा ताड़न करने को हस्तताल जानना चाहिए। वहां दण्ड होता है, वह लौकिक और लोकोत्तर दो प्रकार का इस रूप में है 1. नारी बचपन में पिता के, यौवन में पति के तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन होती है अतः नारी प्रायः स्वतंत्र नहीं होती। इस संदर्भ में व्यवहारभाष्य में निम्न श्लोक प्राप्त होता है जाता पितिवसा नारी, दिण्णा नारी पतिव्वसा। विहवा पुत्तवसा नारी, नत्थि नारी सयंवसा // व्यभा 1589/1 / 2,3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.५६,५७।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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