________________ 502 जीतकल्प सभाष्य 2351. परधार्मिक भी दो प्रकार के होते हैं -लिंगप्रविष्ट और गृहस्थ। इन सबका स्तैन्य तीन प्रकार का होता है—आहार, उपधि और सचित्त-शैक्ष विषयक। 2352. कोई लुब्ध मुनि बौद्ध भिक्षुओं की संखड़ी में उनका लिंग धारण करके भोजन करता है, उस समय कोई उसे पहचान ले तो चतुर्लघु और यदि उसकी भर्त्सना हो तो चतुर्गुरु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 2353, 2354. लोग प्रवचन की हीलना करते हैं कि ये लोग भोजन के लिए ही प्रव्रजित होते हैं, इन्होंने कभी दान दिया ही नहीं है तथा ये दुष्ट आत्मा वाले हैं। गृहवास में भी ये गरीब ही थे। निश्चित ही इन्होंने अपना कल्याण नहीं देखा है। इनके शास्ता ने इनका गला नहीं दबाया और सब कुछ कर दिया। 2355-57. यह आहारविषयक स्तैन्य का वर्णन है। उपधि विषयक स्तैन्य का वर्णन इस प्रकार है कि कोई बौद्ध भिक्षु अपने मठ में उपधि छोड़कर भिक्षार्थ गया। यदि उसकी उपधि को साधु चुराए तो चतुर्लघु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। यदि वह बौद्ध भिक्षु मुनि को पकड़ ले तो चतुर्गुरु, राजकुल के सम्मुख उसे घसीटे तो छड्गुरु, यदि राजा व्यवहार-न्याय करे तो छेद, यदि उसे पश्चात्कृत (पुनः गृहस्थ बनाना) करे तो मूल तथा देश से निष्काशित करे अथवा अपद्रावण करे तो अंतिम पारांचित प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 2358. इन दोषों के कारण अदत्त को ग्रहण नहीं करना चाहिए। यह उपधि स्तैन्य का वर्णन है, अब मैं सचित्त स्तैन्य के बारे में कहूंगा। 2359. जो साधु अव्यक्त क्षुल्लक अथवा क्षुल्लिका को उसके सम्बन्धी से पूछे बिना चुराकर ले जाए तो उसको चतुर्गुरु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। व्यक्त के लिए पृच्छा की अपेक्षा नहीं है। व्यक्त के क्षेत्र और उसकी शक्ति को जानकर प्रव्रजित किया जा सकता है। 2360. यह लिंगप्रविष्टों (अन्यधार्मिकों) के स्तैन्य का वर्णन किया गया। गृहस्थों का स्तैन्य भी इसी प्रकार तीन प्रकार का होता है। इसमें ग्रहण, कर्षण आदि दोष विशेष रूप से होते हैं। 2361. घर में सुखाने के लिए फैलाई हुई पिष्टपिंडिका आदि को देखकर कोई क्षुल्लिका साध्वी उसे ग्रहण कर ले। ग्रहण करती हुई उस क्षुल्लिका को गृहस्वामिनी भी देख ले, वह क्षुल्लिका साध्वी भी कुशलता से अन्य साध्वी के पात्र में वस्तु डाल दे तो यह आहार स्तैन्य है। 2362. आहार स्तैन्य करने पर चतुर्लघु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। एक आदेश के अनुसार वह अनवस्थाप्य होता है। इसी प्रकार सूत्राष्टिका वस्त्र आदि का ग्रहण उपधि स्तैन्य है। 1. इनका प्रायश्चित्त पूर्ववत् जानना चाहिए। २.यहां शाक्य आदि की क्षुल्लक या क्षुल्लिका होने से उसे अन्यधार्मिक स्तैन्य जानना चाहिए। बृहत्कल्पभाष्य की वृत्ति के अनुसार यदि क्षेत्र शाक्य आदि से प्रभावित है तथा राजभवन में उनका प्रभाव है तो पुच्छा के बिना व्यक्त क्षुल्लक या क्षुल्लिका को भी दीक्षित करना कल्प्य नहीं है। .