________________ 498 जीतकल्प सभाष्य 2307. प्रतिसेवना अनवस्थाप्य संक्षेप में तीन प्रकार का होता है-१. साधर्मिक स्तैन्य 2. अन्यधार्मिक स्तैन्य 3. हस्तताल या हस्तादान। 2308. साधर्मिक स्तैन्य दो प्रकार का होता है-सचित्त और अचित्त। अचित्त में उपधि और भक्त की चोरी करने वाला तथा सचित्त में शैक्ष का अपहरण करने वाला। 2309. साधर्मिक की उपधि को चुराना, गुरु को कहे बिना उसको स्वयं ले लेना, उपधि दग्ध हो गई, इस बहाने से गृहस्थ से नए वस्त्र लेना, गुरु ने किसी के लिए पात्र, वस्त्र आदि भेजा, वह उसे न देकर बीच में स्वयं ले लेना-ये सब अदत्त व्यवहार शैक्ष करे या अशैक्ष, देखते हुए करे या बिना देखते हुए, उसे प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 2310. शैक्ष पद से यहां अगीतार्थ मुनि तथा आचार्यपद आदि ऋद्धि से रहित गीतार्थ जानना चाहिए। उपधि अर्थात् वस्त्र, पात्र आदि। उपधि परिगृहीत और अपरिगृहीत दोनों प्रकार की होती है। इन दोनों के तीन-तीन भेद हैं -जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। 2311. यदि उपधि अपरिगृहीत है, साधर्मिक को छोड़कर अन्य प्रवासी साधु की है तो उसे चुराने पर क्षेत्र के आधार पर शोधि इस प्रकार होती है२३१२, 2313. उपाश्रय के अंदर और बाहर निवेशन–घर, वाटक', ग्राम, उद्यान और सीमा का अतिक्रमण—इन सबके अंदर और बाहर अदृष्ट चोरी करने पर लघुमास' से प्रारम्भ होकर छेद प्रायश्चित्त . तक अर्ध अपक्रान्ति से शोधि होती है। 2314. शैक्ष के द्वारा दृष्ट स्तैन्य करने पर गुरुमास से लेकर मूल पर्यन्त प्रायश्चित्त निर्दिष्ट है। उपाध्याय और आचार्य के एक-एक स्थान की वृद्धि हो जाती है।' 2315. यह उपाश्रय से साधर्मिक की उपधि हरण करने का प्रायश्चित्त कहा। अब गुरु की आज्ञा के बिना स्वयं ही ग्रहण करके उसका प्रयोग करने का प्रायश्चित्त कहूंगा। 2316, 2317. गुरु ने त्रिविध उपधि लाने के लिए भेजा। उसको वहीं प्राप्त करके यह तुम्हारी है, यह मेरी है' बाहर ही उसका विभाजन करके आत्मार्थ कर लिया, ऐसी स्थिति में स्वयं काम में लेने पर 1. वाटक की पाटक छाया भी संभव है। आप्टे में पाटक शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं, उनमें दो अर्थ यहां संगत हैं 1. गांव का एक भाग, 2. गांव का आधा हिस्सा। 1. आप्टे पृ. 580 / 2. उपाध्याय और आचार्य के द्वारा अदृष्ट चोरी करने पर गुरुमास से लेकर अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का विधान है तथा दृष्ट स्तैन्य करने पर चतुर्गुरु से लेकर पाराञ्चित पर्यन्त प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। 3. उपाश्रय के भीतर यदि साधर्मिक की चोरी करता है तो लघुमास, उपाश्रय के बाहर करने पर गुरुमास, निवेशन के भीतर गुरुमास, उसके बाहर चतुर्लघु, वाटक के भीतर चतुर्लघु, वाटक के बाहर चतुर्गुरु, ग्राम के अंदर चतुर्गुरु, ग्राम के बाहर षड्लघु, उद्यान के अंदर षड्लघु, उसके बाहर षड्गुरु, सीमा के भीतर षड्गुरु, सीमा का अतिक्रमण करने पर छेद प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1. बृभा 5066 टी पृ. 1351 /