________________ अनुवाद-जी-७१ 481 2114. मध्यम तीर्थंकरों के तीर्थ में पारिहारिक नहीं होते और न ही महाविदेह क्षेत्र में पारिहारिक तप करने वाले होते हैं। 2115. शिष्य प्रश्न पूछता है कि पूर्व और पश्चिम तीर्थंकरों के परिहारकल्पिकों का गच्छ कितने काल तक अनुवर्तित होता है? 2116. आचार्य उत्तर देते हैं कि प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ में परिहारकल्प एक लाख पूर्व तक अनुवर्तित होता है इसलिए दो गच्छ से आगे उसको स्वीकार नहीं किया जाता। 2117. कुछ कम दो पूर्व कोटि तक दोनों पारिहारिकों का आयुष्य होता है, उनमें दो उनतीस अर्थात् अट्ठावन वर्ष कम करे, उतना उत्कृष्ट समय होता है। 2118. अंतिम तीर्थंकर के कतिपय बीस वर्ष अर्थात् कुछ कम दो सौ वर्ष तक परिहारकल्प स्थिति अनुवर्तित होती है। 2119. आठवें वर्ष में प्रव्रज्या तथा नवें वर्ष में उपस्थापना होती है। दीक्षा के 19 वर्ष पूर्ण होने पर मुनि को दृष्टिवाद का ग्रहण कराया जाता है। 2120. शिष्य को एक वर्ष तक दृष्टिवाद की वाचना दी जाती है अतः नौ और बीस वर्ष मिलाने पर उनतीस वर्ष होते हैं। 2121. पश्चिम तीर्थंकर के तीर्थ में दो उनतीस अर्थात् अट्ठावन वर्ष न्यून दो सौ वर्ष तक परिहारविशुद्धि कल्प का अनुवर्तन होता है। 2122. पश्चिम तीर्थंकर के तीर्थ में किसी साधु ने उनतीस वर्ष न्यून सौ वर्ष तक स्वयं कल्प का प्रवर्तन किया फिर जीवन के अन्तिमकाल में दूसरों को कल्प का प्ररूपण कराया। (वे भी 29 वर्ष न्यून 100 वर्ष तक कल्प का पालन कर सकते हैं।) इस प्रकार कुछ न्यून दो सौ वर्ष होते हैं। 2123. जो विद्वान् साधु तीर्थंकर के पादमूल में इस कल्प को स्वीकृत करते हैं, वे ही दूसरों को इसमें स्थापित करते हैं न कि स्थापित स्थापक। 2124., 2125. परिहारकल्प स्वीकार करने वाले सभी मुनि चारित्रसम्पन्न, दर्शन में पूर्णता को प्राप्त, जघन्यतः नवपूर्वी, उत्कृष्टतः दशपूर्वी (कुछ न्यून दशपूर्वी), आगम आदि पंचविध व्यवहार के ज्ञाता, द्विविध कल्प-(अकल्पस्थापना कल्प तथा शैक्षस्थापना कल्प अथवा जिनकल्प और स्थविरकल्प) तथा दश प्रकार के प्रायश्चित्त-इन सबमें परिनिष्ठित होते हैं। 2126. वे महामुनि अपने शेष आयुष्य को जानकर तथा अपने बल, वीर्य, पराक्रम को समझकर परिहारकल्प स्वीकार करते हैं, रोग आदि अपायों पर वे पहले ही ध्यान दे देते हैं। 2127. यदि उनके कोई अन्य व्याघात या प्रत्यपाय नहीं होते तो वे परिहारकल्प को स्वीकार करते हैं अन्यथा स्वीकार नहीं करते। 1. यह कल्प तीर्थंकरों के पास स्वीकार किया जाता है या जिस साधु ने तीर्थंकर के पास इस कल्प को स्वीकृत किया ___ है, उनके पास इसे ग्रहण किया जा सकता है। आगे इसकी परम्परा नहीं चलती अतः स्थापित स्थापक से यह कल्प स्वीकृत नहीं किया जा सकता।