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________________ अनुवाद-जी-७१ 469 1997. अपने क्षेत्र की चारों दिशाओं में एक योजन तक तीन बार गवेषणा करने पर भी यदि दुर्लभ द्रव्य की प्राप्ति नहीं होती तो कृतयोगी मुनि सागारिकपिण्ड का सेवन कर सकता है। 1998. किस राजा के राजपिण्ड का परिहार किया जाए? राजपिण्ड के कितने भेद हैं? उसके ग्रहण में दोष क्या है? किस स्थिति में राजपिंड ग्रहण कल्पनीय है? उसके ग्रहण में यतना कैसी होनी चाहिए? (इन द्वारों की मीमांसा करनी चाहिए।) 1999. दो प्रकार के राजा होते हैं-१. मुदित 2. मूर्धाभिषिक्त। जो योनि शुद्ध (जिसके माता-पिता राजवंशीय हों) होता है, वह मुदित तथा जो दूसरों के द्वारा राजा के रूप में अभिषिक्त होता है अथवा स्वयं राजा भरत की भांति अभिषिक्त होता है, वह मूर्धाभिषिक्त कहलाता है। 2000. मुदित और अभिषिक्त की चतुर्भंगी' के प्रथम भंग में राजपिण्ड वर्ण्य है, चाहे उसे ग्रहण करने में दोष हो अथवा न हो। शेष तीन भंगों में वह राजपिण्ड नहीं होता। जिन भंगों में दोष हों, उनका वर्जन करना चाहिए। 2001. राजपिण्ड आठ प्रकार का होता है-१. अशन 2. पान 3. खाद्य 4. स्वाद्य 5. वस्त्र 6. पात्र 7. कम्बल 8. पादप्रोञ्छन। 2002. अष्टविध राजपिण्ड में से यदि साधु किसी भी प्रकार का राजपिण्ड ग्रहण करता है तो वह आज्ञाभंग, अनवस्था, मिथ्यात्व और विराधना को प्राप्त होता है। 2003. ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, श्रेष्ठी और सार्थवाह-इनके निर्गमन तथा प्रवेश करते समय भिक्षार्थ गए साधु के व्याघात होता है। 2004. भोजिक-ग्रामस्वामी आदि ईश्वर' कहलाता है। राजा द्वारा प्रदत्त स्वर्णपट्ट से अंकित सिर वाला तलवर', वेष्टनक (श्रीदेवता से अध्यासित) बद्ध श्रेष्ठी तथा प्रत्यन्त नृप माडम्बिक' कहलाता है। 1. मुदित और मूर्धाभिषिक्त की चतुर्भगी इस प्रकार है-१. मुदित है, मूर्धाभिषिक्त भी है। 2. मुदित है, मूर्धाभिषिक्त नहीं। 3. मुदित नहीं, मूर्धाभिषिक्त है। 4. न मुदित, न मूर्धाभिषिक्त। 2. भाष्यकार ने ग्रामवासी को ईश्वर कहा है। आचार्य अभयदेवसूरि ने ईश्वर के अनेक अर्थ किए हैं -युवराज, मांडलिक-चार हजार राजाओं का अधिपति, अमात्य अथवा अणिमा आदि आठ लब्धियों से युक्त / ' 1. स्थाटी प. 439; ईश्वरो-युवराजो माण्डलिकोऽमात्यो वा, अन्ये च व्याचक्षते-अणिमाद्यष्टविधैश्वर्ययुक्त ईश्वर इति। 3. राजा के समान ऐश्वर्यसम्पन्न व्यक्ति, केवल जिसके पास चामर नहीं होता, वह तलवर कहलाता है। १.निभा 2502 चू पृ. 450, रायप्रतिमो चामरविरहितो तलवरो भण्णति। 4. राजा द्वारा जिसे श्रीदेवी के चिह्न से अंकित शिरोवेष्टनक की अनुज्ञा प्राप्त हो, वह श्रेष्ठी कहलाता है। १.निभा 2502 चूप. 450, जम्मिय पट्टेसिरियादेवी कज्जति तं वेंटणगं,तं जस्स रण्णा अणुण्णातं, सो सेट्ठी भण्णति। ५.जो सब दिशाओं से छिन्न हो, जिसके आसपास ढ़ाई गव्यूत अथवा ढ़ाई योजन तक कोई ग्राम आदि न हो, वह __ स्थान मडम्ब कहलाता है, उसका अधिपति माडम्बिक होता है। . १.निभा 2503 चूपृ. 450, जो छिण्णमडंब जति सो माडंबिओ, पच्चंतविसयणिवासी राया माडंबिओ, जो सरज्जे पररज्जे य पच्चभिण्णातो।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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